तेरा गुस्सा तेरी मुस्कान से भी ज़्यादा दिलक़श है,
जो पहले जानता तो रोज़ ही नाराज़ करता मैं,
तू मेरी है नहीं तक़दीर में, ये जानता हूँ मैं,
मगर मेरी अगर होती तो ख़ुद पर नाज़ करता मैं,
तेरे दुनिया में आने से, भला पहले मैं आया क्यूं,
तेरे ही साथ अपनी जीस्त का आगाज़ करता मैं,
तू मुस्तक़बिल मेरा होती , तेरा “संजीव” मैं होता,
फ़रिशतों की तरह ज़न्नत तलक परवाज़ करता मैं...... “संजीव” मिश्रा
जो पहले जानता तो रोज़ ही नाराज़ करता मैं,
तू मेरी है नहीं तक़दीर में, ये जानता हूँ मैं,
मगर मेरी अगर होती तो ख़ुद पर नाज़ करता मैं,
तेरे दुनिया में आने से, भला पहले मैं आया क्यूं,
तेरे ही साथ अपनी जीस्त का आगाज़ करता मैं,
तू मुस्तक़बिल मेरा होती , तेरा “संजीव” मैं होता,
फ़रिशतों की तरह ज़न्नत तलक परवाज़ करता मैं...... “संजीव” मिश्रा
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ... क्या बात कही है ... धमाकेदार शेर ....
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