सोमवार, 20 जनवरी 2014

नव वर्ष शुभ............


मैं भी था चाहता कहना, हो शुभ ये, वर्ष नव तुमको,
मगर मजबूरी है कुछ, जो मुझे कहने नहीं देती,

करी कोशिश भी कुछ मैंने, के होऊँ जश्न में शामिल,
मगर परि-स्थिति इस देश की, होने नहीं देती,

मुझे जब याद आता है, क़हर सोलह दिसम्बर का,
शरम हंसने न दे मुझको, घृणा रोने नहीं देती,

मैं हूँ उस निर्भया के, देश में रहता जहां, आयु
किसी शैतान को, मुल्ज़िम बना रहने नहीं देती,

मुझे लगता है मैं, इक पाप के रौरव में रहता हूँ,
जहां इक माँ ही, पैदा बेटियाँ होने नहीं देती,

यहाँ सत्ता असत की है, है ये बस्ती हैवानी,
जो बिना गंगा किये मैली यहाँ, बहने नहीं देती,

मैं किस मुंह से भला कह दूं, मुबारक़ साल हो तुमको,
जहा व्य-वस्था लड़की को जवां, होने नहीं देती,

थे जब “संजीव”; कुंआरे, तो शब् भर जश्न रहता था,
फ़िकर अब बेटियों के बाप को, सोने नहीं देती,

मैं फिर हूँ माँगता माफ़ी, मुझे मूआफ़ करना तुम,
मेरी ग़ैरत , मुझे नव वर्ष शुभ कहने नहीं देती................. संजीव मिश्रा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें