ऐ इल्म की देवी,
ज़हानत दे मुझे,
जहां रौशन ये कर
पाऊँ, ये क़ूवत दे मुझे,
बिखेरूं नूर मैं
हर सिम्त, बस इतिहाद का,
रहूँ इतिहाम से मैं
दूर, क़ूवत दे मुझे,
भरा हो दिल मेरा
बस, इश्क़ से, इश्फाक़ से,
रक़ीबों को भी
अपनाऊँ, ये क़ूवत दे मुझे,
दे क़ुव्वत
इक्तिज़ा से ज़्याद, हासिल मैं करूँ,
रखूँ इफ़रात में
इफ्फ़त, ये क़ूवत दे मुझे,
न मुझ पर हाय हो
कोई, दुआ सबको मैं दूं,
बने “संजीव”
ज़ाकिर-पाक़, क़ूवत दे मुझे......संजीव मिश्रा
इल्म=ज्ञान,
ज़हानत=बुद्धिमानी, क़ूवत=सामर्थ्य, हर सिम्त=हर ओर(चतुर्दिक), इत्तिहाद=एकता,
मित्रता, इत्तिहाम= दोष, इश्फाक़=दया, रक़ीबों=प्रतिद्वंदी, इक़्तिज़ा= आवश्यकता, इफ़रात=बहुतायत,
इफ्फ़त=पवित्रता, शुद्धता, ज़ाकिर=कृतज्ञ,
पाक़=पवित्र
रकीबों को भी अपना सके ऐसी कूवत आ जाए तो दुनिया स्वर्ग हो जाए ...
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब शेर ..