हरी किनारी वाली चोली लाल, बदल डाली,
जो हमको भाई थी तुमने, तस्वीर बदल डाली,
शिष्ट भाव से, मात्र प्रशंसा ही की थी हमने,
श्रृंगार-प्रणय की कोमल कलिका, हाय मसल डाली,
तुम्हरे कान के कुंडल, कुंतल, ओष्ठ, नयन कजरारे,
तुम्हें समर्पित थी कविता वो, चरण कमल डाली,
अब प्रियतम संग दिखती हो, केवल, हमें जलाने को तुम,
क्यों हाय बताओ तुमने कर, ये आँख सजल डाली,
केवल तस्वीर नहीं बदली, है बदल दिया तुमने जग,
“संजीव” से, तुम निष्ठुर ने, उसकी छीन ग़ज़ल डाली .......संजीव मिश्रा
जो हमको भाई थी तुमने, तस्वीर बदल डाली,
शिष्ट भाव से, मात्र प्रशंसा ही की थी हमने,
श्रृंगार-प्रणय की कोमल कलिका, हाय मसल डाली,
तुम्हरे कान के कुंडल, कुंतल, ओष्ठ, नयन कजरारे,
तुम्हें समर्पित थी कविता वो, चरण कमल डाली,
अब प्रियतम संग दिखती हो, केवल, हमें जलाने को तुम,
क्यों हाय बताओ तुमने कर, ये आँख सजल डाली,
केवल तस्वीर नहीं बदली, है बदल दिया तुमने जग,
“संजीव” से, तुम निष्ठुर ने, उसकी छीन ग़ज़ल डाली .......संजीव मिश्रा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें