हो गयी है ख़ता, हम ख़तावार है,
आपकी माफ़ियों के तलबगार हैं,
अब भी नादान हैं, कब सयाने हुए,
अब भी बचकाने से, अपने मेयार हैं,
आपको दोस्त अपना, समझ बैठे हम,
दें सज़ा, आप अब जो भी, तैयार हैं,
की ख़ता, हम मुख़ातिब, हुए आपसे,
न हमें इल्म था, हमसे बेज़ार हैं,
फ़िर ये नादानियाँ, अब न दोहराएंगे,
आज से हम भी “संजीव” हुशियार हैं.... संजीव मिश्रा
आपकी माफ़ियों के तलबगार हैं,
अब भी नादान हैं, कब सयाने हुए,
अब भी बचकाने से, अपने मेयार हैं,
आपको दोस्त अपना, समझ बैठे हम,
दें सज़ा, आप अब जो भी, तैयार हैं,
की ख़ता, हम मुख़ातिब, हुए आपसे,
न हमें इल्म था, हमसे बेज़ार हैं,
फ़िर ये नादानियाँ, अब न दोहराएंगे,
आज से हम भी “संजीव” हुशियार हैं.... संजीव मिश्रा
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