यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता,
आज की पीढ़ी को ये, शायद अभी तक न पता,
उनके लिए अस्तित्व नारी का सिरफ इक देह है,
पर देह भी मंदिर सृजन का, कोई उनको दे बता,
प्रेम, करुणा और ममता, और समर्पण हैं छिपे,
देह को बस रेशमी, इक आवरण मैं मानता,
देह से आगे कभी, जाकर भी तुम देखो उसे,
अंतःकरण छू पाओ तुम, हासिल करो ये पात्रता,
ऐसा नहीं कि मुझको ये, देहें लुभाएँ न, मगर,
पर प्रेम पाना है प्रथम, “संजीव” इतना जानता.........संजीव मिश्रा
आज की पीढ़ी को ये, शायद अभी तक न पता,
उनके लिए अस्तित्व नारी का सिरफ इक देह है,
पर देह भी मंदिर सृजन का, कोई उनको दे बता,
प्रेम, करुणा और ममता, और समर्पण हैं छिपे,
देह को बस रेशमी, इक आवरण मैं मानता,
देह से आगे कभी, जाकर भी तुम देखो उसे,
अंतःकरण छू पाओ तुम, हासिल करो ये पात्रता,
ऐसा नहीं कि मुझको ये, देहें लुभाएँ न, मगर,
पर प्रेम पाना है प्रथम, “संजीव” इतना जानता.........संजीव मिश्रा
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