उन्होंने कहा है नफ़रत, छोड़ो, तो चलो छोड़ें,
दिल नाज़नीनों का हम, अब कैसे भला तोड़ें,
उन हुस्न के मालिक की, ये इल्तिज़ा, हुकुम है,
ये आइना रिश्तों का, अब टूटा, चलो जोड़ें,
हो गुफ़्तगू जो उनसे , बस वो ही तो ग़ज़ल है,
अब ग़ज़ल की कोशिश हो, अब रुख कलम का मोड़ें,
“संजीव” हो जहां पर, वहाँ बात इश्क़ की हो,
दुनियावी मसाइल पर, हम सर क्यों भला फोड़ें.....संजीव मिश्रा
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