धवल दन्त पंक्ति शोभित है, रक्तिम होठों बीच,
ये निश्छल मुस्कान मिटाती, है मन की सब कीच,
चुनर बैंगनी, नीला कुरता, केश बायें कंधे पर,
फ़िर-फ़िर ये तस्वीर मुझे, ले आये तुम तक खींच,
लम्बी-पतली-सुतवां काया , कनक छरी सी लागो,
इक कल्पवृक्ष तुम, जिसे गया हो, अमृत द्वारा सींच,
तुम्हें देख जग सुन्दर लगता, कहीं न कोई द्वैत,
भेद-भाव मिट चुके सभी अब, कोई ऊंच न नीच,
कुछ ऐसा मायावी है, आकर्षण पाया तुमने,
“संजीव” तुम्हें पहचाने लाखों में भी आँखें मींच ......संजीव मिश्रा
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