रविवार, 30 नवंबर 2008

जिंदगी है प्याला ......भाग २


प्याला न ख़राब कोई
न कोई भला प्याला ,
इक खेल खेलता है ,
सबसे पिलाने वाला ,

इक में लबालब , इक में
इक बूँद न शराब ।


जिसे जितनी मिल गयी वो ..........

कोई है नशे में सोता ,
कोई जागता है भूखा ,
कहीं मखमली हैं बिस्तर ,
कहीं कौर भी न रूखा ,

क्यों प्याला दे दिया , जब
देनी न थी शराब ।

जिसे जितनी मिल गयी वो ..........

हम भी तरस रहे हैं ,
पाने को चंद बूँदें ,
हम मांगकर थके , वो
बैठा है कान मूंदे ,

शायद हमारा प्याला
ना - काबिले शराब ।

ज़िन्दगी है प्याला
तकदीर है शराब
जिसे जितनी मिल गयी
वो उतना ही कामयाब

सोमवार, 17 नवंबर 2008

उदासी की हवेली है........ भाग १

ज़िन्दगी पहेली है ,
ग़म की इक सहेली है ,

महफ़िलों ने ठुकराया ,
तनहाईओं में खेली है ,

मायूसियों की नीवों पर ,
उदासी की हवेली है ,

चहलो – पहल के जमघट में ,
ज़िन्दगी अकेली है .

शनिवार, 15 नवंबर 2008

जिंदगी है प्याला ........ भाग १

जिंदगी है प्याला ,
तकदीर है शराब ,
जिसे जितनी मिल गयी , वो
उतना ही कामयाब ।


जिसका भरा है प्याला ,
बस वो ही है निराला ,
उसने भुलाया सबसे ,
पहले पिलाने वाला ,



वो समझा मैंने प्याले ,
में ख़ुद भरी शराब ।
ज़िन्दगी है प्याला........ ।

जिसका है प्याला खाली ,
दर - दर का वो सवाली ,
उस खाली पर भरा हर -
प्याला बजाता ताली ,


कहते ख़राब प्याला ,
नापे बिना शराब। ज़िन्दगी है प्याला........ ।

शनिवार, 8 नवंबर 2008

तुझसे बिछड़ने की घड़ी जब आएगी ........

तुझसे बिछड़ने की घड़ी जब आएगी ,
जान कैसे जिस्म में रह पायेगी ,
हर पल यही सदा क़त्ल मुझको करे,
तू जायेगी, तू जायेगी, तू जायेगी ।

तू चली जायेगी मैं रह जाऊँगा ,
गम भला कैसे ये मैं सह पाउँगा ,
रास्तों तुम कितने खुश नसीब हो ,
मैं कहाँ उन क़दमों को चूम पाउँगा ,

ख्वाब में ही दीद अब होगा तेरा ,
तू कहाँ हद्दे नज़र में आएगी ।

तेरे बगैर साँस गर चलती रही ,
ज़िन्दगी उसको न मैं कह पाउँगा ,
पहलू मैं तेरे ,आज मर जाऊं मगर ,
तेरे बिना ज़िंदा नहीं रह पाऊंगा ,

जाना तेरा देखूंगा इन आंखों से मैं ,
किस्मत मेरी अब और क्या दिखलाएगी ।

हरपल यही सदा क़त्ल मुझको करे ,
तू जायेगी , तू जायेगी , तू जायेगी ।


सदा = आवाज़

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

वो चाँद ढल रहा है

वो चाँद ढल रहा है ,
इधर मेरी ज़िन्दगी ,
ये रात आखिरी है ,
तेरे मेरे साथ की ।

मैं तेरे क़दमों की ,
ख़ाक भी न पा सका ,
चूमेगा कोई मेहंदीयां ,
तेरे हाथ की ।

खार भी राहों के तेरी ,
मैं न चुन सका ,
बिंदिया सजायेगा कोई ,

तेरे माथ की ।

तेरे बिना अब ज़िन्दगी ,
न बीत पाएगी ,
तुझसे जो पहले कट गयी,
वो और बात थी ।

दो चार दिन की बात हो तो ,
कोई काट ले ,
मुझको तो मिलनी है सज़ा ये ,
ता - हयात की ।

ख़ाक = धूल, खार = कांटे , ता - हयात = पूर्ण जीवन

रविवार, 2 नवंबर 2008

तेरे हुस्न की शराब से

तू हुस्न है मग़रूर है ,
मैं इश्क हूँ ,मजबूर हूँ ,

तेरे सामने भले नहीं ,
पर छिपा -छिपा तो ज़रूर हूँ ।

तेरे हुस्न की शराब से ,
जो चढा है , मैं वो सुरूर हूँ ,

क़दमों में जो गिरा तेरे ,
उस शख्स का गुरूर हूँ ,

तू हूर है जन्नत की तो ,
मैं भी खुदा का नूर हूँ ,

तेरे हुस्न के चर्चे हैं तो ,
मैं इश्क में मशहूर हूँ ।