शुक्रवार, 23 जनवरी 2009

ज़िन्दगी राम का बनवास नहीं है.......

रंजो ग़म के हर तरफ़ है राक्षस ,
हर घड़ी -हर पल सिरफ़ संत्रास है ,

ज़िन्दगी राम का बनवास नहीं है ,
ज़िन्दगी सीता का लंकावास है ,

वक्ते-बद हंसता है , बैठ रावण सा ,
अच्छे समय के राम की बस आस है ,

उम्मीद के लक्ष्मण हैं धरती पर पड़े ,
ज़िन्दगी तनहा , बहुत उदास है ,

हौसले का वानर भी आया नहीं ,
मुंदरी दिलासे की उसीके पास है ,

पिछले जनम के पाप बन गए मंथरा ,
ये सब लगाई उसकी ही तो आग है ,

पर, असुरों से ये दुर्दिन जलाए जायेंगे ,
उम्मीद ने छोड़ी न अब तक साँस है ,

दस सर का ये बद वक्त माना है प्रबल ,
अच्छे समय का तीर इक पर्याप्त है ,

अच्छा समय भी ज़िन्दगी को ढूंढता है ,
उसके दिल में भी चुभी ये फाँस है ,

एक दिन होगा मिलन फ़िर से वही ,
वक्त का लगना अलग एक बात है ,

'संजीव' वक्त अच्छे बुरे की जंग में ,
जीतेगा वो जिस पर बड़ा विश्वास है ।

रविवार, 18 जनवरी 2009

आँख भी अब तो नम नहीं करता...........

आजकल हिचकियाँ नहीं आतीं ,
याद शायद कोई नहीं करता ,

वो भी अब हो गया सयाना है ,
वक़्त बरबाद वो नहीं करता ,

मैंने भी छोड़ दीं सब उम्मीदें ,
अब कोई भी भरम नहीं करता ,

वक्त भी हो गया ख़ुदा जैसा ,
दुश्मनी ये भी कम नहीं करता ,

मुझको क्या हो गया ख़ुदा जाने ,
अब किसी ग़म का ग़म नहीं करता ,

दुनियाँ ने कर दिया है पत्थर सा ,
आँख भी अब तो नम नहीं करता ,

मौत आना ही एक हल है यहाँ ,
रंज से कोई भी नहीं मरता ,

देख लो हमको हम भी ज़िंदा हैं ,
ग़म किसी को ख़तम नहीं करता ,

साँस पर साँस लिए जाता है ,
'संजीव' तू भी शरम नहीं करता ।

मंगलवार, 13 जनवरी 2009

इतना ग़म न कोई पायेगा आगे अब ............

इतना ग़म न कोई पायेगा आगे अब ,
सिलसिला ये खतम , मैं ही आखीर हूँ ।

बदनसीबी की इक ज़िंदा तस्वीर हूँ ,
गौर से देखिये ग़म की तहरीर हूँ ।

बोझ हूँ इक मैं ख़ुद अपनी ही रूह पर ,
ख़ुद के सीने में चुभता हुआ तीर हूँ ।

मुस्कुरा ना सका दो घडी भी कभी ,
इन लबों पे उदासी की ज़ंजीर हूँ ।

एक चिलमन हूँ मैं हर खुशी के लिए ,
ख़ुद की आँखों में ठहरा हुआ नीर हूँ ।

हूँ ख़ुशी मैं रकीबों के दिल में दबी ,
खैरख्वाहों के दिल में छिपी पीर हूँ ।

तेरी बस्ती यहाँ से है दिखती नहीं ,
रंज की दुनियाँ का एक रह्गीर हूँ ।

शाहज़ादा हूँ मैं ही बुरे वक्त का ,
क़िस्मते-बद की मैं ही तो जागीर हूँ ।

कोशिशों में मेरी, ना थी कोई कमी ,
जो नसीबा से हारी वो तदवीर हूँ ।

ख़्वाब 'संजीव' के अब न देखे कोई ,
जो बिगड़ के न संवरे वो तक़दीर हूँ ।

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

जो आँख में है मेरी वो अश्क ख़ास है.....

होकर अलग तुमसे हुए सबसे अमीर हम ,
सारे जहाँ का दर्द हमारे ही पास है ।


दुनियाँ में चश्मे-नम की कोई कमी नही ,
जो आँख में है मेरी वो अश्क ख़ास है ।

इंसान है वालिद सा , दोशीज़ा ज़िन्दगी है ,
नसीब के नौशे की सबको तलाश है ।

ऐ ज़िन्दगी आ हंस लें एक-दूजे पे ही हम दोनों ,
माहौल अब बदल कुछ तू क्यों उदास है ।

हासिल नहीं होना है कुछ आसमां से तुझको ,
वो बना नहीं सितारा तुझे जिसकी आस है ।

'संजीव' पिए बैठे हम नाक़ामी के ज़हर को ,
जानें न होश क्या है और क्या हवास है ।

तक़दीर ने हमें कुछ ज़्यादा न दिया इससे ,
बस पेट में है रोटी और तन पर लिबास है ।

मंगलवार, 6 जनवरी 2009

तुम्हीं आओ के तुम ही जानो ये जादू चलाना.....१

चाहता हूँ मैं भी अब कुछ मुस्कुराना ,
तुम्हीं आओ के तुम ही जानो ये जादू चलाना ।


तुम्हारे रूप में सिद्धी , हैं तंतर सब अदाओं में ,
बखूबी जानो तुम मृत भावनाओं को जिलाना ।


तुम्हारे पास सब टोने ,तुम्हारे पास सब मंतर ,
तुम्हीं जानो के कैसे रोते को रोना भुलाना ।


लबों को करके तिरछा वो तुम्हारा मुंह बनाना ,
मुझे है याद पल भर में मेरा गुस्सा भुलाना ।


मुझे है याद वो तेरा झटकना गीले बालों को ,
भिगोने को मुझे पूरा वो केशों को झुलाना ।


ये जो कुछ पक्तियां ‘संजीव’ लिख बैठा हो जज्बाती ,
न देखो इनपे तुम हंसना , न तुम गुस्सा दिलाना ।


न मैं ‘ग़ालिब’ , न मैं ‘साहिर’ , न ही ‘दुष्यंत’ हूँ मैं ,
बड़ी मुश्किल से सीखा है ये तुक से तुक मिलाना ।



शनिवार, 3 जनवरी 2009

ऐसे नसीब कब हैं ........

हालात जो पहले थे ,
हालात वही अब हैं ,
कुछ चैन की साँसें लें ,
ऐसे नसीब कब हैं ।


इक हम ही हैं अकेले ,
गमज़दां , परेशां ,
बाक़ी तो इस जहाँ में ,
शादो-आबाद सब हैं ।


हम ढूंढ नहीं पाये ,
खुश होने का बहाना ,
रहने को उदास लेकिन ,
अनगिन यहाँ सबब हैं ।


होठों पे जिनके गाली ,
हाथों में जिनके खंज़र ,
ऐसे ही लोग कुछ अब ,
बन बैठे मेरे रब हैं ।


इस दुनिया में नहीं है ,
कहीं भी मेरा गुज़ारा ,
कुछ हम भी हैं अनोखे ,
कुछ लोग भी अजब हैं ।



शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

हो गयी कम सज़ा और इक साल की....................

सबको ख़ुश देखा हमने नए साल पर ,
देखा सबको ही हँसते -हंसाते हुए ,
साल सारे हमारे तो बीते मगर ,
इक सज़ा जैसे रोते रुलाते हुए ।

साल है ये नया , हो मुबारक तुम्हें ,
न मुबारक कोई साल मुझको हुआ ,
न जिए कोई दुनिया में मेरी तरह ,
इस नए साल पर है मेरी ये दुआ ।

जश्न की रात वो तो सदा की तरह ,
अपनी तो बीती आंसू छिपाते हुए ।

हर नए साल ने है बहुत कुछ दिया ,
दीं नयी उलझनें , मुश्किलें दीं नयी ,
ग़म नए कुछ दिए , कुछ नयी जिल्लतें ,
इम्तहाँ और नाक़ामियां कुछ नयी ,

दिल में डर है छिपा , मैं हूँ सहमा हुआ ,
अब ये है साथ लाया क्या आते हुए ।

पर है थोडी खुशी भी , गया साल इक ,
हो गयी कम सज़ा और इक साल की ,
जैसे अब तक कटे , ये भी कट जायेगा ,
क्यों हो परवाह अब और इक साल की ,

आप जी भर जियें इस नए साल में ,
बीतूं ना मैं भी इसको बिताते हुए ।