नया इस दुनिया में क्या है, सभी कुछ तो पुराना है,
के फिर से ढोल ग़ैरों का, यहाँ मिल कर बजाना है,
समझते हैं बखूबी हम, बहुत देखे तमाशे ये ,
इकट्ठे शाम को होकर, सिरफ पीना पिलाना है,
पटाखे फोड़ने हैं और, मिल करना है हो- हल्ला,
नये इस साल का क़िस्सा, तो केवल इक बहाना है,
अगर मैं पूंछ लूं इनसे , ये संवत कौन सा है तो,
जवाब इन पर नहीं होगा, यही सच सोलह आना है,
खबर घर की नहीं इनको, चलें ये साथ दुनिया के,
मेरे हिन्दोस्तां में आया ये, कैसा ज़माना है,
है माफ़ी चाहता “संजीव”, बातें करता ऎसी है,
मगर ये मुल्क है सोया, मुझे इसको जगाना है..... संजीव मिश्रा
के फिर से ढोल ग़ैरों का, यहाँ मिल कर बजाना है,
समझते हैं बखूबी हम, बहुत देखे तमाशे ये ,
इकट्ठे शाम को होकर, सिरफ पीना पिलाना है,
पटाखे फोड़ने हैं और, मिल करना है हो- हल्ला,
नये इस साल का क़िस्सा, तो केवल इक बहाना है,
अगर मैं पूंछ लूं इनसे , ये संवत कौन सा है तो,
जवाब इन पर नहीं होगा, यही सच सोलह आना है,
खबर घर की नहीं इनको, चलें ये साथ दुनिया के,
मेरे हिन्दोस्तां में आया ये, कैसा ज़माना है,
है माफ़ी चाहता “संजीव”, बातें करता ऎसी है,
मगर ये मुल्क है सोया, मुझे इसको जगाना है..... संजीव मिश्रा
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