जिसे भी प्यार से
देखा उसी को कर लिया अपना,
तेरे नाचीज़ को थोड़ा
सा ये, कुछ फ़ख्र हासिल है,
मेरे चेहरे पे
नुमायाँ, ये मेरी
रूह पाक़ीज़ा,
ख़ुदाई बन्दा कहलाने का मुझे, कुछ फ़ख्र हासिल है,
यूं तो मैं नर्म दिल इंसां की तरहा जाना जाता हूँ,
मुझे तूफां खड़े कर
देने का, कुछ फ़ख्र हासिल है,
नहीं परवाह करता बहर की या रुक्न की कुछ भी,
सराहो तुम जिसे,
लिख देने का, कुछ फ़ख्र हासिल है,
ये दीगर बात है, मेरी क़लम
महरूमे-शौहरत है,
मगर दिल में
उतरने का मुझे , कुछ फ़ख्र हासिल है,
मैं आँखें नम
हूँ कर देता, तबीयत शाद कर देता,
तेरा “संजीव”
कहलाने का मुझे, कुछ फ़ख्र हासिल है....................संजीव मिश्रा
बहुत खूब ... लाजवाब शेर निकले हैं आज तो ...
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