पत्थर की अहिल्या
सा जीवन बीता जाये,
पर सुख की साँसों
के राम अभी तक न आये,
भाग्य बना
दुष्यंत, भुला शा-कुंतल-जीवन,
मछुआरे मुंदरी
लिये अभी तक न आये,
है प्राप्त मनुज
का देह, भाग्य; शापित सुर सा,
कोई शापोद्धारक मुनि अभी तक न आये,
इस दुर्बल तन,
रोगी मन का वैध्य वही मेरा,
जाने मेरा उपचार
, अभी तक न आये,
“संजीव” ह्रदय की
नाव रही सूनी-सूनी,
कोई मृगनयनी,
कुंतल-श्याम, अभी तक न आये..............संजीव मिश्रा
behtreen...
जवाब देंहटाएंराम भी आएंगे ... अहिल्या का उद्धार भी होगा ... समय की बात है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है ...