इस माया से मोह
भंग हो पाये न,
इन सुन्दर मुखड़ों
का आकर्षण, जा पाये न,
ये कमनीया
कायाएँ लुभाती हैं मुझको,
ये क्षीण-कटि का पाश मुझे तज पाये न,
ये पटर-पटर-पट बातें, नैन चंचल
तिरछे,
भ्रू-वक्र, ओष्ठ-रक्ताभ, ह्रदय बच पाये न,
ये कोमल-कोमल देहें, गौर रक्तिम-रक्तिम,
इस इंद्रजाल से इतर तो कुछ जंच पाये न,
चहुँ ओर देख
यौवन-मंदिर चलते-फ़िरते,
ये दीन पुजारी
भजे बिना रह पाये न,
ये गर्वीले –
उद्दाम – प्रबल –उन्मत - जोबन,
ये दुर्बल प्रेमी चित्त विकल, सुख पाये न,
ये श्रांगारिक, रसपूर्ण जगत
देखूं भौंचक,
अतृप्त आत्मा व्यथित, ठौर कहीं पाये न,
“संजीव” तू कवियों
जैसी बात करता किन्तु,
कामिनियाँ जिसे सराहें
,वो गीत लिख पाये न.........संजीव मिश्रा
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