तुमसे अच्छा, मुझसे बेहतर, कौन यहाँ पर, कौन कहे,
मेरे इश्क़, तेरे
हुस्न से बढ़कर, क्या है कहीं ,अब कौन कहे,
तेरे जलवे, तेरी अदाएं,
तिरी कमसिनी,
रूप तेरा,
तेरे नादां-क़ातिल
तेवर, तुझसे बचना, कौन
कहे,
था तिरा
नाज़ से पैर बढ़ाना, भारी मेरी ग़ज़लों पर,
उफ़-तौबा, ये शोख़ तबस्सुम, इन पर नज़्में कौन कहे,
रुखसार पे ज़ुल्फ़ों के कुंडल, मैं वारी, क़लम मेरी कुर्बां,
तू पार बयानों के सारे , अब तुझ पर कुछ
भी कौन कहे,
तू ही शीरीं,
तू ही सोहनी, तू लैला-हीर रही मेरी,
तू जान के भी
अनजान बने तो अब तुझसे कुछ कौन कहे,
महिवाल तेरा मैं
जन्मों का, फ़रहाद मैं ही बन
आया था,
मजनूँ-रांझा भी मैं ही था, अब और ज़ियादा
कौन कहे,
हर जनम तुझे बस खो
बैठा, इस जनम बना “संजीव” हूँ मैं,
इस बार भी तुझको पाऊंगा, या न पाऊंगा, कौन कहे.............संजीव मिश्रा
खुबसूरत अभिवयक्ति..
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत खूब ... हसीनों से ये सब कहना मुश्किल तो नहीं पर वो मानते भी कहां मानती हैं ...
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