रेलगाड़ी में हूं, अकेला हूँ
डिब्बे में, कुछ उकता रहा हूँ,
हफ़्ते का आख़िरी दिन है, आज घर
जा रहा हूँ,
शाम ढल चुकी है, रात के आठ
बज जाने को हैं,
खिडकी से आती हवा दिलक़श
मालूम होती है,
रेल गुनगुनाती सी कुछ ऐसे चलती जाती है,
जैसे कमसिन कोई सखियों से कुछ बतियाती है,
कभी फुसफुसाती है दबे सुरों
में कुछ आहिस्ता से,
और ठहाकों सी कभी सीटियाँ
बजाती है,
अँधेरा हो चला है, तारे कुछ यूं दिखाई देते हैं,
जैसे जंगल में स्याह पेड़ों की उंची शाखों पर,
जुगनुओं का कोई जलसा सा ,
कोई मजलिस हो,
समां खूबसूरत सा है पर दिल
नहीं लुभाता है,
रेल रुक रुक के चल रही है
कुछ पडावों पर,
मुझको मुसलसल सिरफ तेरा
ख़याल आता है,
जिस क़दर टूट मुझे तूने मुहब्बत की है,
मेरा था फ़र्ज़ दिलो जां से
तेरा हो रहता,
जैसे तू मुझपे है सौ जान से
निछावर यूं,
मेरे भी दिल में सिवा तेरे,
न और कोई रहता,
नहीं रहना था मुझे मसरूफ उसकी बांहों में,
नहीं बितानी थीं शामें मुझे
उसकी उन पनाहों में,
न ढूंढना था सुकूं मुझको
उसकी ज़ुल्फ़ तले,
न बितानी थी ज़िंदगी ये उसकी
चाहों में,
मैंने रातें बिताईं हैं
आगोश में जिसके,
वो मेरे सुख की है साथी, न
दुःख की हो सकती,
आज एहसास है के प्यारी वो
भले कितनी हो,
नहीं तुझसी वो,शरीक़े-हयात
हो सकती,
आज शर्मिन्दा हूँ दिल से, मैं
अपनी हस्ती पर,
जो तेरा हक़ था, वही तुझको दे नहीं पाया,
ऐशो-आराम न दे पाया तुझे दुनिया के,
और क्या देता तुझे मैं वफ़ा
न दे पाया,
मुझको करना मुआफ़, इन मेरे अज़ीम गुनाहों पर,
मैं भी कोशिश करूं कि रहूँ
सिर्फ, तेरी राहों पर,
आज बस इतना ही कह पाऊंगा ऐ
मेरे हमदम,
साथ आऊंगा मैं तेरे अब मिला
क़दम से क़दम,
रेल रुकने को है, पर सफ़र ज़िन्दगी
का बाक़ी है,
और सफ़र ये, तेरे अब
साथ मैं बिताऊंगा,
माना कल लौट कर आना है मुझे
फिर वापिस,
उदास मत होना , तेरे पास
मैं फिर आऊंगा.......
जीवन के सफर को रिल्के माध्यम से शब्दों में उतार दिया ... गहरे भाव दिल की पटरी पर ...
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