कुछ कहना चाहता हूँ,पर लफ्ज़ नहीं मिलते,
कुछ घुमड़ रहा दिल में, जो बाहर नहीं आता,
इक अजब सी बेचैनी, में कट रहे हैं दिन ये ,
एक घुटन है जिससे मैं, उबर अब नहीं पाता,
मालूम अगर होता, तक़दीर जीतती है,
ये इल्म-हुनर कुछ भी , मैं साथ नहीं लाता,
है दुनिया हक़ीक़त तो , "संजीव" पे भारी है,
ये ख्वाब अगर है तो, भुलाया नहीं जाता ......
कुछ घुमड़ रहा दिल में, जो बाहर नहीं आता,
इक अजब सी बेचैनी, में कट रहे हैं दिन ये ,
एक घुटन है जिससे मैं, उबर अब नहीं पाता,
मालूम अगर होता, तक़दीर जीतती है,
ये इल्म-हुनर कुछ भी , मैं साथ नहीं लाता,
है दुनिया हक़ीक़त तो , "संजीव" पे भारी है,
ये ख्वाब अगर है तो, भुलाया नहीं जाता ......
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