सुबह के तीन बजते ही, उठो और भागो औफ़िस को,
बस हफ़्ते का ये पहला दिन बड़ा भारी गुज़रता है,
वो नौ से पांच तक का वक़्त तो कट जाता है लेकिन,
सफ़र ये चार घंटे का बड़ा भारी गुज़रता है,
बड़ा अच्छा सा लगता है शनीचर को घर आ जाना,
मगर सोमवार का जाना बड़ा भारी गुज़रता है,
ये माना ज़िन्दगी में मेहनतें करनी ही पड़ती है,
मुक़द्दर साथ न दे जब, बड़ा भारी गुज़रता है,
अलग वो लोग हैं जो हैं कमा पाते सुकूं से कुछ,
मगर "संजीव" को ये सब बड़ा भारी गुज़रता है........
बस हफ़्ते का ये पहला दिन बड़ा भारी गुज़रता है,
वो नौ से पांच तक का वक़्त तो कट जाता है लेकिन,
सफ़र ये चार घंटे का बड़ा भारी गुज़रता है,
बड़ा अच्छा सा लगता है शनीचर को घर आ जाना,
मगर सोमवार का जाना बड़ा भारी गुज़रता है,
ये माना ज़िन्दगी में मेहनतें करनी ही पड़ती है,
मुक़द्दर साथ न दे जब, बड़ा भारी गुज़रता है,
अलग वो लोग हैं जो हैं कमा पाते सुकूं से कुछ,
मगर "संजीव" को ये सब बड़ा भारी गुज़रता है........
बहुत खूब ... सच है शनिवार के बाद सोमवार नहीं सुहाता ...
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल के माध्यम से दिल का हाल लिखा है ...
धन्यवाद नासवा साहब.......
जवाब देंहटाएं