कुछ भी क़ायम नहीं , इस तेरी दुनिया-ऐ-फ़ानी में,
चार दिन मुश्किल से मिले
हैं इस, बेरंग सी जवानी में,
कुछ दिनों का ही सही, तेरा
साथ अगर मिल जाता,
ख़ुशबू-ओ-रंग भर जाते इस तनहा
सी ज़िन्दगानी में........
मैंने माना कि तेरे कितने
ही आशना होंगे,
बहुत मजनूँ हुए दुनिया-ऐ-आनी-जानी में,
यूं तो कितने ही किस्से हैं
घुले फिज़ाओं में,मगर
फ़र्क है थोडा सा तेरे “संजीव”
की कहानी में.......
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