तनहा -तनहा शामें, रातें वीरानी,
दिन उजड़े -उजड़े से हर पल मातम सा,
क्यों इतनी बड़ी सज़ा, ख़ता छोटी सी थी,
पाना जो चाहा था, उसका दामन था,
छोड़ दो मुझको हाल मेरे, मत खेलो अब,
कल फ़िर तेरी बातों में कुछ अपनापन था,
विरह की लम्बी उम्र, बद-दुआ सा जीवन,
जी पाया "संजीव" यही कुछ क्या कम था.......
दिन उजड़े -उजड़े से हर पल मातम सा,
क्यों इतनी बड़ी सज़ा, ख़ता छोटी सी थी,
पाना जो चाहा था, उसका दामन था,
छोड़ दो मुझको हाल मेरे, मत खेलो अब,
कल फ़िर तेरी बातों में कुछ अपनापन था,
विरह की लम्बी उम्र, बद-दुआ सा जीवन,
जी पाया "संजीव" यही कुछ क्या कम था.......
बहुत खूब ... मस्त हैं सभी शेर .... हसीनाओं की अदा ऐसी ही होती है ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिवयक्ति.....
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