रविवार, 1 सितंबर 2013

ये खवाब अगर है तो...........

कुछ कहना चाहता हूँ,पर लफ्ज़  नहीं मिलते,
कुछ घुमड़ रहा दिल में, जो बाहर नहीं आता,

इक  अजब सी  बेचैनी, में कट  रहे हैं दिन ये ,
एक  घुटन है जिससे मैं, उबर अब नहीं पाता,

मालूम    अगर   होता, तक़दीर जीतती है,
ये  इल्म-हुनर कुछ भी  , मैं साथ नहीं लाता,

है  दुनिया   हक़ीक़त तो , "संजीव" पे भारी है,
ये    ख्वाब   अगर है  तो, भुलाया  नहीं जाता ......

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