अब क्या कहें और क्या सुनें बस ये सवाल है,
बिन तेरे जी लिए हम, इसका मलाल है ,
इजहारे-इश्क़ मेरा, साबित हुआ हराम,
छुप-छुप के मिलना ग़ैर से उनका, हलाल है,
काशी की तरफ पीठ मेरी, है, हुआ करे,
अब सामने तेरा मेरे हुस्नो-जमाल है,
बिरहमन हूँ मैं ,बुत पूजना मज़हब है ये मेरा ,
इक तुझको पूजने पे मचा क्यों बवाल है,
"संजीव" मुफ़लिस ज़र से है,जज़्बात से नहीं,
दिल इश्क़ की तौफीक़ से ये मालामाल है,
बिन तेरे जी लिए हम, इसका मलाल है ,
इजहारे-इश्क़ मेरा, साबित हुआ हराम,
छुप-छुप के मिलना ग़ैर से उनका, हलाल है,
काशी की तरफ पीठ मेरी, है, हुआ करे,
अब सामने तेरा मेरे हुस्नो-जमाल है,
बिरहमन हूँ मैं ,बुत पूजना मज़हब है ये मेरा ,
इक तुझको पूजने पे मचा क्यों बवाल है,
"संजीव" मुफ़लिस ज़र से है,जज़्बात से नहीं,
दिल इश्क़ की तौफीक़ से ये मालामाल है,
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें