आज तुम मुझको भी
आज़ाद कर दो,
अपनी ख्वाहिश से ,
तमन्ना से,
जो न पा सकूं
उसकी हसरत से,
मेरे अरमानों में
भरी इस शिद्दत से,
मेरे वजूद में
समाई मुहब्बत से,
इस शायराना तबीयत
और
मेरी इस आशिक़ाना
फितरत से,
बहुत जी लिया मैं
इक ख़याली शदाब दुनिया में,
आईना-ऐ-हक़ीक़त
दिखाओ, मुझे नाशाद कर दो......
आज तुम मुझको भी
आज़ाद कर दो.
कर दो आज़ाद मुझे
मेरी ही हर ख़ुश फहमी से,
कर दो आज़ाद मुझे
मेरी ही बद गुमानी से,
मैं था मसरूफ
मेरे अशआर-ग़ज़ल-नज्मों में,
रू-ब-रू फ़िर मेरे ये दुनिया-ऐ-फ़ानी कर दो,
लगा होने है कुछ
बेज़ार "संजीव", अब इस किस्से से,
ख़त्म तुम आज ये
नाज़ुक सी कहानी कर दो,
कर दो नाबूद तुम मेरा ये महल हसरत का,
अपनी हस्ती से मकां और का आबाद कर दो.......
आज तुम मुझको भी
आज़ाद कर दो...
बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
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