चुप-चाप से आते हो , खामोश से जाते हो,
किस बात का गुस्सा है जो हमको दिखाते हो,
माना के आप ही से, है रौनके-महफ़िल ये,
हम में भी कुछ तो होगा, क्या हमको जताते हो,
क़ायल हैं हम तो खुद ही, हर आप की अदा के,
जो आप पे मरता है, क्यूं उसको मिटाते हो,
माना के चमन महके, है आपकी ख़ुशबू से,
हम से है रंगे-गुलशन, तेवर क्या दिखाते हो,
कमतर न मुझे आंको, मैं इश्क़े-इलाही हूँ,
तुम नखरे ये फ़िरदौसी, यहाँ किसको दिखाते हो,
"संजीव" की क़िस्मत में तन्हाई ही है लिक्खी,
तुम आये भला कब थे, जो जा के दिखाते हो....
किस बात का गुस्सा है जो हमको दिखाते हो,
माना के आप ही से, है रौनके-महफ़िल ये,
हम में भी कुछ तो होगा, क्या हमको जताते हो,
क़ायल हैं हम तो खुद ही, हर आप की अदा के,
जो आप पे मरता है, क्यूं उसको मिटाते हो,
माना के चमन महके, है आपकी ख़ुशबू से,
हम से है रंगे-गुलशन, तेवर क्या दिखाते हो,
कमतर न मुझे आंको, मैं इश्क़े-इलाही हूँ,
तुम नखरे ये फ़िरदौसी, यहाँ किसको दिखाते हो,
"संजीव" की क़िस्मत में तन्हाई ही है लिक्खी,
तुम आये भला कब थे, जो जा के दिखाते हो....
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंजो आपपे मरता है क्यों उसको मिटाते हो ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... यूं पूरी गज़ल खूबसूरत शेरों से सजी है ...
धन्यवाद सुषमा जी एवं नासवा साहब......
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