चाहता हूँ मैं भी अब कुछ मुस्कुराना ,
तुम्हीं आओ के तुम ही जानो ये जादू चलाना ।
तुम्हारे रूप में सिद्धी , हैं तंतर सब अदाओं में ,
बखूबी जानो तुम मृत भावनाओं को जिलाना ।
तुम्हारे पास सब टोने ,तुम्हारे पास सब मंतर ,
तुम्हीं जानो के कैसे रोते को रोना भुलाना ।
लबों को करके तिरछा वो तुम्हारा मुंह बनाना ,
मुझे है याद पल भर में मेरा गुस्सा भुलाना ।
मुझे है याद वो तेरा झटकना गीले बालों को ,
भिगोने को मुझे पूरा वो केशों को झुलाना ।
ये जो कुछ पक्तियां ‘संजीव’ लिख बैठा हो जज्बाती ,
न देखो इनपे तुम हंसना , न तुम गुस्सा दिलाना ।
न मैं ‘ग़ालिब’ , न मैं ‘साहिर’ , न ही ‘दुष्यंत’ हूँ मैं ,
बड़ी मुश्किल से सीखा है ये तुक से तुक मिलाना ।
तुम्हारे रूप में सिद्धि है,
जवाब देंहटाएंहै तंतर सब अदाओं में....
वाह ! याद नही पड़ता आज से पहले किसी ग़ज़ल में
मैंने ऐसी खूबसूरत बानगी देखी हो
लेकिन सच मुच बहोत अच्छा लग रहा है सब पढ़ते हुए
बधाई !!
मुफलिस .
bahut khub..accha likha hai aapne.....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,,,दिल खुश हो गया...आखिरी शेर, शेर नही सवा शेर था|
जवाब देंहटाएंbahut badhiya.tumhare rup me siddhi hai, hai tantar sab adao me......bahut badhiya ekdam alg or naya.....
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