शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

हो गयी कम सज़ा और इक साल की....................

सबको ख़ुश देखा हमने नए साल पर ,
देखा सबको ही हँसते -हंसाते हुए ,
साल सारे हमारे तो बीते मगर ,
इक सज़ा जैसे रोते रुलाते हुए ।

साल है ये नया , हो मुबारक तुम्हें ,
न मुबारक कोई साल मुझको हुआ ,
न जिए कोई दुनिया में मेरी तरह ,
इस नए साल पर है मेरी ये दुआ ।

जश्न की रात वो तो सदा की तरह ,
अपनी तो बीती आंसू छिपाते हुए ।

हर नए साल ने है बहुत कुछ दिया ,
दीं नयी उलझनें , मुश्किलें दीं नयी ,
ग़म नए कुछ दिए , कुछ नयी जिल्लतें ,
इम्तहाँ और नाक़ामियां कुछ नयी ,

दिल में डर है छिपा , मैं हूँ सहमा हुआ ,
अब ये है साथ लाया क्या आते हुए ।

पर है थोडी खुशी भी , गया साल इक ,
हो गयी कम सज़ा और इक साल की ,
जैसे अब तक कटे , ये भी कट जायेगा ,
क्यों हो परवाह अब और इक साल की ,

आप जी भर जियें इस नए साल में ,
बीतूं ना मैं भी इसको बिताते हुए ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. dard.ogham ko asardaar lafzon mein pirone ke
    nafees dhang se vaaqif hain aap...
    aapki aah mein aapka bemisaal adab posheeda hai
    yahi prerna hai aapke liye, yahi taaqat hai...
    Ek achhi rachna pr badhaaee....
    ---MUFLIS---

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  2. bahut khoob,

    'duniyaa ne tajaribaat-o-havaadis kee shaql men

    jo kuchh mujhe diyaa vo lautaa rahaa hoon main'.


    aur aapkee rachanaa padh kar yaad aayaa:

    abake bhee aakar vo koee haadasaa de jaaegaa
    aur usake paas kyaa hai jo nayaa de jaaegaa.'

    जवाब देंहटाएं