हालात जो पहले थे ,
हालात वही अब हैं ,
कुछ चैन की साँसें लें ,
ऐसे नसीब कब हैं ।
इक हम ही हैं अकेले ,
गमज़दां , परेशां ,
बाक़ी तो इस जहाँ में ,
शादो-आबाद सब हैं ।
हम ढूंढ नहीं पाये ,
खुश होने का बहाना ,
रहने को उदास लेकिन ,
अनगिन यहाँ सबब हैं ।
होठों पे जिनके गाली ,
हाथों में जिनके खंज़र ,
ऐसे ही लोग कुछ अब ,
बन बैठे मेरे रब हैं ।
इस दुनिया में नहीं है ,
कहीं भी मेरा गुज़ारा ,
कुछ हम भी हैं अनोखे ,
कुछ लोग भी अजब हैं ।
bahut khoobasoorat rachana . mishra ji likhate rahiye . dhanyawad.
जवाब देंहटाएंgujaaraa fir bhi chaltaa hai
जवाब देंहटाएंpahle bhi thaa
aaj hai
kal rahegaa
kuch hum v anokhe kuch log v ajab hai..........
जवाब देंहटाएंbahut khub. ek dam sahi.
bhut sunder rachna he.
जवाब देंहटाएंsanjeev ji
bahoot sunder..
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