गुरुवार, 29 अगस्त 2013

यूं नादाँ न हो कोई......

ख़यालों     की   मेरी दुनिया, मेरे ख़्वाबों की वो जन्नत,
जहां    हसरत     न हो कोई,   जहां   अरमां न हो कोई,

मयस्सर हो   जहां   सब कुछ सुकूं से ज़िन्दा  रहने को,
न हो ग़ुरबत,  न हो मजलूम,जहां मुफ़लिस  न हो कोई,

जहां   दिल सबसे   मिलता हो, किसी से न अदावत हो,
जहां इक   फूल हो   हर  हाथ में,   पत्थर   न हो   कोई,

जहाँ   वो    साथ   हों    मेरे , मैं हूँ जिनकी  दुआओं में,
वफ़ा   ऎसी    निबाहें हम ,      निभा पाया न  हो कोई,

जहां   उन    गेसुओं   की    छांव   में, बीते उमर सारी,
जहां     रौशन   तारीक़ी है,    जहां   सुबहा  न  हो कोई,

तुम्हीं   "संजीव"   गफ़लत   में किया करते हो ये बातें,
कोई     अहमक,  कोई   मासूम,  यूं   नादाँ   न हो कोई......

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