सोमवार, 19 अगस्त 2013

मुझको भी आज़ाद कर दो..........



आज तुम मुझको भी आज़ाद कर दो,

अपनी ख्वाहिश से , तमन्ना से,
जो न पा सकूं उसकी  हसरत से,

मेरे अरमानों में भरी इस शिद्दत से,
मेरे वजूद में समाई मुहब्बत  से,

इस शायराना तबीयत और
मेरी इस आशिक़ाना फितरत से,

बहुत जी लिया मैं इक ख़याली शदाब दुनिया में,
आईना-ऐ-हक़ीक़त दिखाओ, मुझे नाशाद कर दो......

आज तुम मुझको भी आज़ाद कर दो.

कर दो आज़ाद मुझे मेरी ही हर ख़ुश फहमी से,
कर दो आज़ाद मुझे मेरी ही बद गुमानी से,

मैं था मसरूफ मेरे अशआर-ग़ज़ल-नज्मों में,
रू-ब-रू फ़िर  मेरे ये दुनिया-ऐ-फ़ानी कर दो,

लगा होने है  कुछ बेज़ार "संजीव", अब इस किस्से से,
ख़त्म तुम आज ये नाज़ुक सी कहानी कर दो,


कर दो नाबूद तुम मेरा ये महल हसरत का,

अपनी हस्ती से  मकां और का आबाद कर दो.......


आज तुम मुझको भी आज़ाद कर दो...

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

कौम से हूँ बिरहमन...........

क्या रस्ता, क्या मंज़िल , क्या दुनिया, क्या "महफ़िल",
क्या   सहरा,    क्या     गुलशन ,  क्या उनका नशेमन,

सभी    से     ही    हैं ,अब    तो     वाक़िफ      बखूबी,
कहीं        भी    नहीं    अब     तो   टिकता है ये मन,

उन्हीं      के     ही    क़दमों    में    है ज़ीस्त अब तो,
के     जिनसे     हमेशा   ही    रहती   है      अनबन,

न      था     मैं     भी     हक़   में,    के  पूजूं बुतों को,
करूं     क्या      मगर    कौम     से    हूँ    बिरहमन,

मेरी      ग़ज़लों    के रंग,   मेरी   नज़्मों  की खुशबू,
सब    उसी   ने  अता   की ,   सब उस  को है अरपन ,

 जिस   तरहा , पेश   आये   हैं      "संजीव" से वो ,
पेश     आये    ,रकीबों   से     न   कोई दुश-मन ......




बुधवार, 14 अगस्त 2013

क्या हमको जताते हो...........

चुप-चाप से आते हो ,   खामोश से जाते हो,
किस बात का गुस्सा है जो हमको दिखाते हो,

माना के   आप ही से,   है रौनके-महफ़िल ये,
हम में भी कुछ तो होगा, क्या हमको जताते  हो,

क़ायल हैं हम तो खुद ही, हर आप की अदा के,
जो आप पे मरता है, क्यूं उसको मिटाते हो,

माना के चमन महके, है आपकी ख़ुशबू से,
हम से है रंगे-गुलशन, तेवर क्या दिखाते हो,

कमतर न मुझे आंको, मैं इश्क़े-इलाही हूँ,
तुम नखरे ये फ़िरदौसी, यहाँ किसको दिखाते हो,

"संजीव" की क़िस्मत में तन्हाई ही है लिक्खी,
तुम आये भला कब थे, जो जा के दिखाते हो....

शनिवार, 10 अगस्त 2013

इश्क़ के किस्से हुए पुराने हैं....

इश्क़ के किस्से हुए पुराने हैं,
हुस्न के भी बहुत अफ़साने हैं,
आओ के बैठें साथ मिल कर हम,
मुद्दे कुछ और भी सुलझाने हैं......

ज़ीस्त आगे भी है ऐ दोस्त मेरे,
नाज़नीनों के इन रुखसारों से,
मिले माशूक से फुर्सत तो हाल दुनिया का,
पूछ इन आज के अखबारों से,

तल्ख़ हालात मुल्क के हैं तेरे  ,
उस हसीं ज़ुल्फ़ के साये  बहुत सुहाने हैं....

देख क्या हाल बच्चियों का है,
एक हैवान भी शरमा जाए,
जम्मू-कश्मीर ,असाम और यूपी,
देख दिल मेरा ये सहमा जाये,

कुछ-न-कुछ तो पड़ेगा  अब करना,
सोये अब लोग  ये जगाने हैं.....

फ़ौज ही खुद नहीं महफूज़ यहाँ,
घुस के दुश्मन ही मार जाता है,
और ये बेहया निज़ाम  अपना,
दोस्ती का ही गीत गाता है,

चल-चलें आज निकल, दुश्मन  से,
सर  जवानों के ले के आने हैं.....

मुझको मालूम है के बेज़ा है,
गूंगे-बहरों से मेरा कुछ कहना,
बेचना है ये बस चश्मे जैसे,
बीच अंधों के गाँव में रहना,

फ़िर भी "संजीव" मुल्क मेरा है,
सारे हथियार आज़माने हैं........

रविवार, 4 अगस्त 2013

जिसकी "खुशबू" से.........

अपनी बांहों में भरे घूमूं तसव्वुर जिसका,
आज की रात उसे बस मेरा तू मेहमां कर दे,

जिसकी "खुशबू" से महकता है हर लम्हा मेरा,
वो कली चूम के आने का तो सामां कर दे,

सारी दानाई निछावर मेरी, उसकी नादानी पर,
मुझको भी उसकी तरह बस , आज तू नादां कर दे,

मेरे इस दिल के पयाले में है हसरत जो भरी,
उसकी उन सुरमई आँखों में वो अरमां भर दे,

उसका आगोश ही है बस एक मेरा चारागर,
उसके बीमार की ये रात कुछ आसां कर दे,

जिस तरह मैंने गंवाया है ये अपना चैनो-सुकूं,
मेरी तड़पन ये उसे आज परेशां कर दे,

दिल के वो पास रहे, आँखों से सदा दूर रहे ,
क्यूं न वो सामने आकर मुझे हैरां कर दे ,

जिस बू-ऐ-ख़ुश से है मदहोश क़लम आज तेरी ,
सर सरे-आम झुका "संजीव" , उसे भगवां कर दे.