जीवन की पीड़ाओं को शब्दों में उंडेलने का प्रयास करता, प्रेम-मिलन,विरह,दुख, भाग्य आदि विभिन्न भावनाओं को शब्द देता एक कविता-गीत-ग़ज़ल शायरी का ब्लॉग। ज़िन्दगी की सज़ा काटने में आयीं दुश्वारियों को शायरी की ज़ुबान देने की एक कोशिश।
रविवार, 4 अगस्त 2013
बुधवार, 31 जुलाई 2013
माया है.............
शास्त्र कहते है , ये सब माया है,
सत्य एक "वो" है, बाक़ी छाया है,
ये सन्सार , ये रौनक , ये मोह ,ये सब आसक्ति,
सब अनित्य है, इक झूठ का सरमाया है,
और ये सब किसी सामान्य से मानव ने नहीं ,
अपने दैवीय ऋषि-मुनियों ने फरमाया है,
इक गहन चिंतन सा किया मैंने आजीवन इस पर,
और अब जाके इसका सार हाथ आया है,
जिसको " वो" कहके इंगित किया उनहोंने , "वो" सिर्फ तू ही है,
तेरी अदाओं में ही तिरलोक सारा छाया है,
तेरी आँखों में समाये हैं वो भुवन चौदह,
मुस्कुराहट में तेरी ब्रह्माण्ड ये समाया है,
सत्य "संजीव" ने पाया तेरी बांहों में सिरफ,
छुप के आंचल में तेरे मोक्ष यहीं पाया है......
सत्य एक "वो" है, बाक़ी छाया है,
ये सन्सार , ये रौनक , ये मोह ,ये सब आसक्ति,
सब अनित्य है, इक झूठ का सरमाया है,
और ये सब किसी सामान्य से मानव ने नहीं ,
अपने दैवीय ऋषि-मुनियों ने फरमाया है,
इक गहन चिंतन सा किया मैंने आजीवन इस पर,
और अब जाके इसका सार हाथ आया है,
जिसको " वो" कहके इंगित किया उनहोंने , "वो" सिर्फ तू ही है,
तेरी अदाओं में ही तिरलोक सारा छाया है,
तेरी आँखों में समाये हैं वो भुवन चौदह,
मुस्कुराहट में तेरी ब्रह्माण्ड ये समाया है,
सत्य "संजीव" ने पाया तेरी बांहों में सिरफ,
छुप के आंचल में तेरे मोक्ष यहीं पाया है......
शुक्रवार, 26 जुलाई 2013
वो “शाम” सुहानी है......
मेरे ख़्वाबों की रानी है,
वो “शाम” सुहानी है,
दिलक़श सा फ़साना है,
सुन्दर सी कहानी है,
वो हुस्न है हूरों का,
परियों की जवानी है,
है नज़्म इक खुदाई,
इक ग़ज़ल रूहानी है,
मैं उसका दिवाना , वो
औरों की दिवानी है,
नेमत है ख़ुदा की वो,
पर ग़ैर को जानी है,
इक तरफ़ा मुहब्बत ये,
अब मुझको निभानी है,
नाक़ाम सी उल्फ़त ये,
अब उसकी निशानी है,
इक बात चलते-चलते ,
बस उसको बतानी है,
वो “संजीव” की क़िस्मत है,
क्यूं उससे बेगानी है????
वो “शाम” सुहानी है,
मेरे ख़्वाबों की रानी है.....
मंगलवार, 26 मार्च 2013
होली कहाँ मुबारक है, इस हैवानों के देश में .
दीदी कह, चलती बस में, दुष्कर्म भाई के वेश में ,
होली कहाँ मुबारक है, इस हैवानों के देश में .
कुत्सित आवेगों की पिचकारी , कु-वासनाओं का रंग लिये ,
देह-पिपासु घूम रहे चहुँ ओर काम की भंग पिये ,
रज़िया-सोफ़ी - राधा -प्रीतो , सब जीती हैं क्लेश में,
होली कहाँ मुबारक है, इस हैवानों के देश में .
कुछ मिलतीं अधमरी सड़क पर, कुछ खेतों में मरीं मिलीँ ,
बच्ची-युवती -गर्भ-वती-विक्षिप्त ,सभी इस आग जलीं ,
है ,आधी आबादी खतरे में, ऐसे इस परिवेश में,
होली कहाँ मुबारक है, इस हैवानों के देश में .
जब बेटी बाहर जाए तो मन्नत ना मांगें माएं ,
पिता का दिल न लरजे और ना ही भाई भेजे जाएँ,
जब मैली नज़रें किसी की बहनों पर उठने से घबरायें ,
जब हाथ किसी युवती की चुनरी तक जाने में थर्राएँ,
ना हो जब तक ऐसा सु-शासन,हर गाँव-जिले-प्रदेश में,
होली कहाँ मुबारक है, इस हैवानों के देश में .
गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013
फिर तुम यूं आये जीवन में ..........
फिर तुम यूं आये जीवन में ..........
तुम्हारे लिए लिखी एक अधूरी रचना जो जीवन के नियमित- दैनिक झंझटों के चलते कभी पूरी न हो पाई .
आज कथित प्रणय दिवस के अवसर पर तुम्हीं को समर्पित।
गुण दैवीय , रूप अलौकिक ,
वाणी वीणा की झंकार,
सुन्दर से - सुन्दरतम उपहार ,
क्यों न तुम पर आये प्यार।
मणिक जटित इक हिरण्य पात्र में,
ज्यों अमृत मदिरा के संग,
जीवनदायी भी- मादक भी,
शीतल भी लेकिन दाहक भी,
रोम-रोम रस का संचार।
मैं विश्वास करूं तो कैसे,
भाग्य बदलते हैं कब ऐसे,
जो स्वप्न कभी देखा ही न था ,
वो पूरा हो पाया कैसे,
करता हर पल बस यही विचार।
साथ तुम्हारा -मेरा ऐसे ,
ज्यों स्मित के साथ रुदन , या
अंधियारे के साथ किरण ,या
इक रेतीली प्रतिमा के
गले पडा हीरों का हार।
चहुँ ओर तम ही दिखता था,
सपना भी धुंधला दिखता था,
लक्ष्य दूर की बात रही,
मुझको तो पथ भी न दिखता था
थी नैय्या पतवार रहित और
उस पर भी थी बीच धार,
फिर तुम यूं आये जीवन में, ज्यों
समूह हँस, इक निर्जन वन में,
आ जाएँ करने विहार,
या कोई निर्धन निज आँगन,
पा जाए रत्नों के भंडार।
क्यों न तुम पर आये प्यार।
तुम्हारे लिए लिखी एक अधूरी रचना जो जीवन के नियमित- दैनिक झंझटों के चलते कभी पूरी न हो पाई .
आज कथित प्रणय दिवस के अवसर पर तुम्हीं को समर्पित।
गुण दैवीय , रूप अलौकिक ,
वाणी वीणा की झंकार,
सुन्दर से - सुन्दरतम उपहार ,
क्यों न तुम पर आये प्यार।
मणिक जटित इक हिरण्य पात्र में,
ज्यों अमृत मदिरा के संग,
जीवनदायी भी- मादक भी,
शीतल भी लेकिन दाहक भी,
रोम-रोम रस का संचार।
मैं विश्वास करूं तो कैसे,
भाग्य बदलते हैं कब ऐसे,
जो स्वप्न कभी देखा ही न था ,
वो पूरा हो पाया कैसे,
करता हर पल बस यही विचार।
साथ तुम्हारा -मेरा ऐसे ,
ज्यों स्मित के साथ रुदन , या
अंधियारे के साथ किरण ,या
इक रेतीली प्रतिमा के
गले पडा हीरों का हार।
चहुँ ओर तम ही दिखता था,
सपना भी धुंधला दिखता था,
लक्ष्य दूर की बात रही,
मुझको तो पथ भी न दिखता था
थी नैय्या पतवार रहित और
उस पर भी थी बीच धार,
फिर तुम यूं आये जीवन में, ज्यों
समूह हँस, इक निर्जन वन में,
आ जाएँ करने विहार,
या कोई निर्धन निज आँगन,
पा जाए रत्नों के भंडार।
क्यों न तुम पर आये प्यार।
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