फिर तुम यूं आये जीवन में ..........
तुम्हारे लिए लिखी एक अधूरी रचना जो जीवन के नियमित- दैनिक झंझटों के चलते कभी पूरी न हो पाई .
आज कथित प्रणय दिवस के अवसर पर तुम्हीं को समर्पित।
गुण दैवीय , रूप अलौकिक ,
वाणी वीणा की झंकार,
सुन्दर से - सुन्दरतम उपहार ,
क्यों न तुम पर आये प्यार।
मणिक जटित इक हिरण्य पात्र में,
ज्यों अमृत मदिरा के संग,
जीवनदायी भी- मादक भी,
शीतल भी लेकिन दाहक भी,
रोम-रोम रस का संचार।
मैं विश्वास करूं तो कैसे,
भाग्य बदलते हैं कब ऐसे,
जो स्वप्न कभी देखा ही न था ,
वो पूरा हो पाया कैसे,
करता हर पल बस यही विचार।
साथ तुम्हारा -मेरा ऐसे ,
ज्यों स्मित के साथ रुदन , या
अंधियारे के साथ किरण ,या
इक रेतीली प्रतिमा के
गले पडा हीरों का हार।
चहुँ ओर तम ही दिखता था,
सपना भी धुंधला दिखता था,
लक्ष्य दूर की बात रही,
मुझको तो पथ भी न दिखता था
थी नैय्या पतवार रहित और
उस पर भी थी बीच धार,
फिर तुम यूं आये जीवन में, ज्यों
समूह हँस, इक निर्जन वन में,
आ जाएँ करने विहार,
या कोई निर्धन निज आँगन,
पा जाए रत्नों के भंडार।
क्यों न तुम पर आये प्यार।
तुम्हारे लिए लिखी एक अधूरी रचना जो जीवन के नियमित- दैनिक झंझटों के चलते कभी पूरी न हो पाई .
आज कथित प्रणय दिवस के अवसर पर तुम्हीं को समर्पित।
गुण दैवीय , रूप अलौकिक ,
वाणी वीणा की झंकार,
सुन्दर से - सुन्दरतम उपहार ,
क्यों न तुम पर आये प्यार।
मणिक जटित इक हिरण्य पात्र में,
ज्यों अमृत मदिरा के संग,
जीवनदायी भी- मादक भी,
शीतल भी लेकिन दाहक भी,
रोम-रोम रस का संचार।
मैं विश्वास करूं तो कैसे,
भाग्य बदलते हैं कब ऐसे,
जो स्वप्न कभी देखा ही न था ,
वो पूरा हो पाया कैसे,
करता हर पल बस यही विचार।
साथ तुम्हारा -मेरा ऐसे ,
ज्यों स्मित के साथ रुदन , या
अंधियारे के साथ किरण ,या
इक रेतीली प्रतिमा के
गले पडा हीरों का हार।
चहुँ ओर तम ही दिखता था,
सपना भी धुंधला दिखता था,
लक्ष्य दूर की बात रही,
मुझको तो पथ भी न दिखता था
थी नैय्या पतवार रहित और
उस पर भी थी बीच धार,
फिर तुम यूं आये जीवन में, ज्यों
समूह हँस, इक निर्जन वन में,
आ जाएँ करने विहार,
या कोई निर्धन निज आँगन,
पा जाए रत्नों के भंडार।
क्यों न तुम पर आये प्यार।
बहुत खूब .. जीवन में ऐसा हो जाए तो प्यार ताउम्र रहेगा ... हर दिन प्रणय का दिन होगा .... लाजवाब रचना ...
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
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