शास्त्र कहते है , ये सब माया है,
सत्य एक "वो" है, बाक़ी छाया है,
ये सन्सार , ये रौनक , ये मोह ,ये सब आसक्ति,
सब अनित्य है, इक झूठ का सरमाया है,
और ये सब किसी सामान्य से मानव ने नहीं ,
अपने दैवीय ऋषि-मुनियों ने फरमाया है,
इक गहन चिंतन सा किया मैंने आजीवन इस पर,
और अब जाके इसका सार हाथ आया है,
जिसको " वो" कहके इंगित किया उनहोंने , "वो" सिर्फ तू ही है,
तेरी अदाओं में ही तिरलोक सारा छाया है,
तेरी आँखों में समाये हैं वो भुवन चौदह,
मुस्कुराहट में तेरी ब्रह्माण्ड ये समाया है,
सत्य "संजीव" ने पाया तेरी बांहों में सिरफ,
छुप के आंचल में तेरे मोक्ष यहीं पाया है......
सत्य एक "वो" है, बाक़ी छाया है,
ये सन्सार , ये रौनक , ये मोह ,ये सब आसक्ति,
सब अनित्य है, इक झूठ का सरमाया है,
और ये सब किसी सामान्य से मानव ने नहीं ,
अपने दैवीय ऋषि-मुनियों ने फरमाया है,
इक गहन चिंतन सा किया मैंने आजीवन इस पर,
और अब जाके इसका सार हाथ आया है,
जिसको " वो" कहके इंगित किया उनहोंने , "वो" सिर्फ तू ही है,
तेरी अदाओं में ही तिरलोक सारा छाया है,
तेरी आँखों में समाये हैं वो भुवन चौदह,
मुस्कुराहट में तेरी ब्रह्माण्ड ये समाया है,
सत्य "संजीव" ने पाया तेरी बांहों में सिरफ,
छुप के आंचल में तेरे मोक्ष यहीं पाया है......
सार्थक अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंthanks Sushama Ji
जवाब देंहटाएं