मेरे ख़्वाबों की रानी है,
वो “शाम” सुहानी है,
दिलक़श सा फ़साना है,
सुन्दर सी कहानी है,
वो हुस्न है हूरों का,
परियों की जवानी है,
है नज़्म इक खुदाई,
इक ग़ज़ल रूहानी है,
मैं उसका दिवाना , वो
औरों की दिवानी है,
नेमत है ख़ुदा की वो,
पर ग़ैर को जानी है,
इक तरफ़ा मुहब्बत ये,
अब मुझको निभानी है,
नाक़ाम सी उल्फ़त ये,
अब उसकी निशानी है,
इक बात चलते-चलते ,
बस उसको बतानी है,
वो “संजीव” की क़िस्मत है,
क्यूं उससे बेगानी है????
वो “शाम” सुहानी है,
मेरे ख़्वाबों की रानी है.....
वाह संजीव जी ... इस सुहानी शाम के क्या कहने .. लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंदिगंबर साहब, बहुत धन्यवाद,भावनाओं की नदी किस ओर को मुड़ जाए पता नहीं रहता, तारीफ़ का शुक्रिया............
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुषमा जी, हौसला अफज़ाई का शुक्रिया...........
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