इतना ग़म न कोई पायेगा आगे अब ,
सिलसिला ये खतम , मैं ही आखीर हूँ ।
बदनसीबी की इक ज़िंदा तस्वीर हूँ ,
गौर से देखिये ग़म की तहरीर हूँ ।
बोझ हूँ इक मैं ख़ुद अपनी ही रूह पर ,
ख़ुद के सीने में चुभता हुआ तीर हूँ ।
मुस्कुरा ना सका दो घडी भी कभी ,
इन लबों पे उदासी की ज़ंजीर हूँ ।
एक चिलमन हूँ मैं हर खुशी के लिए ,
ख़ुद की आँखों में ठहरा हुआ नीर हूँ ।
हूँ ख़ुशी मैं रकीबों के दिल में दबी ,
खैरख्वाहों के दिल में छिपी पीर हूँ ।
तेरी बस्ती यहाँ से है दिखती नहीं ,
रंज की दुनियाँ का एक रह्गीर हूँ ।
शाहज़ादा हूँ मैं ही बुरे वक्त का ,
क़िस्मते-बद की मैं ही तो जागीर हूँ ।
कोशिशों में मेरी, ना थी कोई कमी ,
जो नसीबा से हारी वो तदवीर हूँ ।
ख़्वाब 'संजीव' के अब न देखे कोई ,
जो बिगड़ के न संवरे वो तक़दीर हूँ ।
जीवन की पीड़ाओं को शब्दों में उंडेलने का प्रयास करता, प्रेम-मिलन,विरह,दुख, भाग्य आदि विभिन्न भावनाओं को शब्द देता एक कविता-गीत-ग़ज़ल शायरी का ब्लॉग। ज़िन्दगी की सज़ा काटने में आयीं दुश्वारियों को शायरी की ज़ुबान देने की एक कोशिश।
मंगलवार, 13 जनवरी 2009
शुक्रवार, 9 जनवरी 2009
जो आँख में है मेरी वो अश्क ख़ास है.....
होकर अलग तुमसे हुए सबसे अमीर हम ,
सारे जहाँ का दर्द हमारे ही पास है ।
दुनियाँ में चश्मे-नम की कोई कमी नही ,
जो आँख में है मेरी वो अश्क ख़ास है ।
इंसान है वालिद सा , दोशीज़ा ज़िन्दगी है ,
नसीब के नौशे की सबको तलाश है ।
ऐ ज़िन्दगी आ हंस लें एक-दूजे पे ही हम दोनों ,
माहौल अब बदल कुछ तू क्यों उदास है ।
हासिल नहीं होना है कुछ आसमां से तुझको ,
वो बना नहीं सितारा तुझे जिसकी आस है ।
'संजीव' पिए बैठे हम नाक़ामी के ज़हर को ,
जानें न होश क्या है और क्या हवास है ।
तक़दीर ने हमें कुछ ज़्यादा न दिया इससे ,
बस पेट में है रोटी और तन पर लिबास है ।
मंगलवार, 6 जनवरी 2009
तुम्हीं आओ के तुम ही जानो ये जादू चलाना.....१
चाहता हूँ मैं भी अब कुछ मुस्कुराना ,
तुम्हीं आओ के तुम ही जानो ये जादू चलाना ।
तुम्हारे रूप में सिद्धी , हैं तंतर सब अदाओं में ,
बखूबी जानो तुम मृत भावनाओं को जिलाना ।
तुम्हारे पास सब टोने ,तुम्हारे पास सब मंतर ,
तुम्हीं जानो के कैसे रोते को रोना भुलाना ।
लबों को करके तिरछा वो तुम्हारा मुंह बनाना ,
मुझे है याद पल भर में मेरा गुस्सा भुलाना ।
मुझे है याद वो तेरा झटकना गीले बालों को ,
भिगोने को मुझे पूरा वो केशों को झुलाना ।
ये जो कुछ पक्तियां ‘संजीव’ लिख बैठा हो जज्बाती ,
न देखो इनपे तुम हंसना , न तुम गुस्सा दिलाना ।
न मैं ‘ग़ालिब’ , न मैं ‘साहिर’ , न ही ‘दुष्यंत’ हूँ मैं ,
बड़ी मुश्किल से सीखा है ये तुक से तुक मिलाना ।
तुम्हीं आओ के तुम ही जानो ये जादू चलाना ।
तुम्हारे रूप में सिद्धी , हैं तंतर सब अदाओं में ,
बखूबी जानो तुम मृत भावनाओं को जिलाना ।
तुम्हारे पास सब टोने ,तुम्हारे पास सब मंतर ,
तुम्हीं जानो के कैसे रोते को रोना भुलाना ।
लबों को करके तिरछा वो तुम्हारा मुंह बनाना ,
मुझे है याद पल भर में मेरा गुस्सा भुलाना ।
मुझे है याद वो तेरा झटकना गीले बालों को ,
भिगोने को मुझे पूरा वो केशों को झुलाना ।
ये जो कुछ पक्तियां ‘संजीव’ लिख बैठा हो जज्बाती ,
न देखो इनपे तुम हंसना , न तुम गुस्सा दिलाना ।
न मैं ‘ग़ालिब’ , न मैं ‘साहिर’ , न ही ‘दुष्यंत’ हूँ मैं ,
बड़ी मुश्किल से सीखा है ये तुक से तुक मिलाना ।
शनिवार, 3 जनवरी 2009
ऐसे नसीब कब हैं ........
हालात जो पहले थे ,
हालात वही अब हैं ,
कुछ चैन की साँसें लें ,
ऐसे नसीब कब हैं ।
इक हम ही हैं अकेले ,
गमज़दां , परेशां ,
बाक़ी तो इस जहाँ में ,
शादो-आबाद सब हैं ।
हम ढूंढ नहीं पाये ,
खुश होने का बहाना ,
रहने को उदास लेकिन ,
अनगिन यहाँ सबब हैं ।
होठों पे जिनके गाली ,
हाथों में जिनके खंज़र ,
ऐसे ही लोग कुछ अब ,
बन बैठे मेरे रब हैं ।
इस दुनिया में नहीं है ,
कहीं भी मेरा गुज़ारा ,
कुछ हम भी हैं अनोखे ,
कुछ लोग भी अजब हैं ।
हालात वही अब हैं ,
कुछ चैन की साँसें लें ,
ऐसे नसीब कब हैं ।
इक हम ही हैं अकेले ,
गमज़दां , परेशां ,
बाक़ी तो इस जहाँ में ,
शादो-आबाद सब हैं ।
हम ढूंढ नहीं पाये ,
खुश होने का बहाना ,
रहने को उदास लेकिन ,
अनगिन यहाँ सबब हैं ।
होठों पे जिनके गाली ,
हाथों में जिनके खंज़र ,
ऐसे ही लोग कुछ अब ,
बन बैठे मेरे रब हैं ।
इस दुनिया में नहीं है ,
कहीं भी मेरा गुज़ारा ,
कुछ हम भी हैं अनोखे ,
कुछ लोग भी अजब हैं ।
शुक्रवार, 2 जनवरी 2009
हो गयी कम सज़ा और इक साल की....................
सबको ख़ुश देखा हमने नए साल पर ,
देखा सबको ही हँसते -हंसाते हुए ,
साल सारे हमारे तो बीते मगर ,
इक सज़ा जैसे रोते रुलाते हुए ।
साल है ये नया , हो मुबारक तुम्हें ,
न मुबारक कोई साल मुझको हुआ ,
न जिए कोई दुनिया में मेरी तरह ,
इस नए साल पर है मेरी ये दुआ ।
जश्न की रात वो तो सदा की तरह ,
अपनी तो बीती आंसू छिपाते हुए ।
हर नए साल ने है बहुत कुछ दिया ,
दीं नयी उलझनें , मुश्किलें दीं नयी ,
ग़म नए कुछ दिए , कुछ नयी जिल्लतें ,
इम्तहाँ और नाक़ामियां कुछ नयी ,
दिल में डर है छिपा , मैं हूँ सहमा हुआ ,
अब ये है साथ लाया क्या आते हुए ।
पर है थोडी खुशी भी , गया साल इक ,
हो गयी कम सज़ा और इक साल की ,
जैसे अब तक कटे , ये भी कट जायेगा ,
क्यों हो परवाह अब और इक साल की ,
आप जी भर जियें इस नए साल में ,
बीतूं ना मैं भी इसको बिताते हुए ।
देखा सबको ही हँसते -हंसाते हुए ,
साल सारे हमारे तो बीते मगर ,
इक सज़ा जैसे रोते रुलाते हुए ।
साल है ये नया , हो मुबारक तुम्हें ,
न मुबारक कोई साल मुझको हुआ ,
न जिए कोई दुनिया में मेरी तरह ,
इस नए साल पर है मेरी ये दुआ ।
जश्न की रात वो तो सदा की तरह ,
अपनी तो बीती आंसू छिपाते हुए ।
हर नए साल ने है बहुत कुछ दिया ,
दीं नयी उलझनें , मुश्किलें दीं नयी ,
ग़म नए कुछ दिए , कुछ नयी जिल्लतें ,
इम्तहाँ और नाक़ामियां कुछ नयी ,
दिल में डर है छिपा , मैं हूँ सहमा हुआ ,
अब ये है साथ लाया क्या आते हुए ।
पर है थोडी खुशी भी , गया साल इक ,
हो गयी कम सज़ा और इक साल की ,
जैसे अब तक कटे , ये भी कट जायेगा ,
क्यों हो परवाह अब और इक साल की ,
आप जी भर जियें इस नए साल में ,
बीतूं ना मैं भी इसको बिताते हुए ।
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