शनिवार, 13 जून 2020

अखरते रहे.......

style="text-align: left;"> अखरते रहे.......
 
साल-दर-साल यूं ही गुज़रते रहे,
ज़िन्दा रहने का हम सोग करते रहे,

कैसा ना जाने कर्मों का इक क़र्ज़ था,
सूद नाकामियों का ही भरते रहे ,

अरमां हरजाई थे, ख़्वाब थे बेवफा,
दोसतों की तरह से मुकरते रहे ,

जिंदगी ना संवर पाई अपनी कभी,
हसरतों की तरह ख़ुद बिखरते रहे,

ऐब था माथे की कुछ लकीरों में ही,
कामयाबी को हम ही अखरते रहे,

जी गये वो जिन्होंने न परवाह की,
हम ग़लत और सही बीच मरते रहे,

रास आया न जीवन ये "संजीव" को,
हादसे हर क़दम पर उभरते रहे। ..........संजीव मिश्रा

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