शनिवार, 13 जून 2020

बार-बार क्यूँ............

बार-बार क्यूँ............

है किसका इंतज़ार जाने, किसकी जुस्तजू,
दरवाज़े पे उठती नज़र, है बार-बार क्यूँ,

हर बार हर महफ़िल से हम ही बेदख़ल हुए,
तनहाई का ये बोझ सर पे, बार-बार क्यूँ,

लगती अधूरी सी है क्यूँ, अपनी ही शख़्सियत,
मैं क्यूँ उसी पर जाऊं हूँ, यूं बार-बार क्यूँ,

कुछ बात है दिल में, कोई जो कह न मैं सका,
लिखता हूँ और फ़िर फाड़ता, ख़त बार-बार क्यूँ,

अपनी तरफ़ से बोलता, जब है नहीं कभी,
देता जवाब फ़िर मुझे, वो बार-बार क्यूँ,

वो हुस्न है, मग़रूर है, खुद्दार मैं भी हूँ,
फ़िर भी वही दरख़्वास्त इक, है बार-बार क्यूँ,

उस पर कोई ग़ज़ल - नज़म, सब बेअसर रहे,
"संजीव"तुक मिलाये फ़िर भी, बार-बार क्यूँ........संजीव मिश्रा

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