उनका चेहरा कँवल सा लगता
है,
इक मुक़म्मल
ग़ज़ल
सा लगता है,
उनके बारे में सोचना
अब
तो,
इक ख़ुदाई अमल सा लगता
है,
दुनिया है इक सवाल अन
सुलझा,
उनका दामन ही, हल सा लगता है,
याद में उनकी बहा हर
आंसू,
मुझको गंगा के जल सा लगता
है,
ये फ़लक, ये हिमाला भी, चाहे टल
जाये,
प्यार मेरा अचल सा
लगता है,
उनकी चाहत में दिल हुआ मंदिर,
घर मेरा इक महल सा
लगता है,
तुम मेरे उपनिषद हो, गीता हो,
तुमसे जीवन सफ़ल सा लगता है,
है ये “संजीव” तुम्हारा ही कई जन्मों से,
तुमको रिश्ता ये क्यों, सिर्फ़ कल सा लगता है....
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