आज फिर दिन है वही, के दुनिया में जब मैं आया था.
यूं ही घुट घुट
के जिये जाने की सज़ा पाया था,
रहूँगा ज़िन्दा मगर, ज़िन्दगी को तरसुंगा,
साथ अपने मैं, ख़ुदा
की ये रज़ा
लाया था,
ऐसे कुछ बीती है अब
तलक उमर ये मेरी,
ज्यों कोई मुझको मिटाने की क़सम खाया था,
जो भी चाहा, वो ही
खोया था , खेल था कैसा ,
जो किया मैंने, कहीं-कुछ भी, वो सब ज़ाया था,
मैंने चाहा कि जियूं
मैं भी सभी
की तरहा,
करूँ तो क्या के
इक वक़्त बुरा
छाया था,
तेरा “संजीव” कभी, पा
सका न कुछ भी कहीं ,
मेरी तद्वीरों पे, नाक़ामियों
का साया था .
बहुत खूब ... सुन्दर अर्थपूर्ण शेर हैं ...
जवाब देंहटाएं