सनम का चाँद सा चेहरा, न हो जब तक निगाहों में,
कहाँ ईदुलज़ुहा तब तक , कहाँ बकरीद
है कोई,
सुबह उठ कर नहाकर
सामने आये तो है पूनम,
वही मावस जो जुल्फें डालकर रुख़ पे हो वो सोई,
वो जब बांहों में हों
मेरी, शबे-बारात है वो ही,
सभी त्यौहार उस दिन, जब, सजी उम्मीद हो कोई,
ख़ुदा के नाम से पहले अता
उसको मेरा सज़दा,
कोई है क़ुफ्र कहता और
कहे दीवानगी कोई,
वो हो जो दूर तो आलम मुहर्रम सा ये लगता है,
वो न दीखे तो
लगता है पितर का पक्ष हो कोई,
तेरे “संजीव” की हालत
बताऊँ क्या भला तुझको,
चले आओ बताते हैं
कि कल फ़िर
ईद है कोई........संजीव मिश्रा
बहुत खच ... आपने तो लाजवाब ईद मना ली इस हुस्न की दीदार में ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...