शनिवार, 13 जून 2020

अखरते रहे.......

style="text-align: left;"> अखरते रहे.......
 
साल-दर-साल यूं ही गुज़रते रहे,
ज़िन्दा रहने का हम सोग करते रहे,

कैसा ना जाने कर्मों का इक क़र्ज़ था,
सूद नाकामियों का ही भरते रहे ,

अरमां हरजाई थे, ख़्वाब थे बेवफा,
दोसतों की तरह से मुकरते रहे ,

जिंदगी ना संवर पाई अपनी कभी,
हसरतों की तरह ख़ुद बिखरते रहे,

ऐब था माथे की कुछ लकीरों में ही,
कामयाबी को हम ही अखरते रहे,

जी गये वो जिन्होंने न परवाह की,
हम ग़लत और सही बीच मरते रहे,

रास आया न जीवन ये "संजीव" को,
हादसे हर क़दम पर उभरते रहे। ..........संजीव मिश्रा

शनिवार, 16 नवंबर 2019

...........मेरी बाँहों की माला

मेरी बाँहों की माला


तुम सुन्दर उर्वशी भांति मैं इंद्र देव सा मतवाला,
प्रणय भाव  में नर्तन होता मद मोहित करनेवाला,
तुम बिन मैं और मुझ बिन तुम हैं आधे और अधूरे से,
तुम सुन्दरता की अग्नि मैं प्रेम-प्यार की हूँ ज्वाला,

तुम यदि मादकता हाला की, मैं सोने का हूँ प्याला,
पड़ा नहीं अब तक शायद तुम-हारा हम जैसों से पाला,
तुम क्या हो हम जिसको चाहें उसकी क़ीमत बढ़ जाए,
इक काली सी लड़की को मजनूं ने लैला कर डाला,

हमको भी तुम यूं ही कोई ऐसा वैसा न समझो,
जिसको हमने चुना  कभी उसको अपना ही कर डाला,
मेरे आलिंगन में है कुछ ऐसा अदभुत अमरत्व छिपा,
लालायित कितनीं  पाने को मेरी बांहों की माला,

हूँ, ऊपर से फ़रहाद-ओ-राँझा, मन भीतर बैरागी वाला,
अब  रंग सभी  स्वीकृत जीवन के, सुनहैरा या हो काला,
तुम चाहे कुछ भी समझो पर, ये “संजीव” समझता है,
जीवन दुःख था, जीवन दुःख है, जीवन दुःख देने वाला.......  संजीव मिश्रा

गुरुवार, 30 मई 2019

सोचना पड़ा......

सोचना पड़ा......

देखा जो आज आइना, तो सोचना पड़ा,
जो दिख रहा है सामने, वो क्यूँ उदास है,

नाक़ामियाँ-ज़िल्लत-ओ-ग़ुरबत, बिगड़ा मुक़द्दर,
क्या चीज़ है जो आज नहीं इसके पास है,

आंख इक अश्क़ों भरी है चीज़ मामूली,
मेरी हँसीं में है छिपा जो दर्द, ख़ास है,

प्यास-भूख और नींद तो हैं साथ हमेशा,
जो खो गयी कमबख्त वो इक चीज़, आस है,

संजीव को कुछ था भरोसा अपने आप पर,
अब घूमता खोये हुए होशो-हवास है।

देखा जो आज आइना, तो सोचना पड़ा,
जो दिख रहा है सामने, वो क्यूँ उदास है।  ........ संजीव मिश्रा

रविवार, 5 मई 2019

सारे दांव............

सारे दांव............

जेठ दुपहरी, नंगे पाँव,
सर न छतरी न कोई छाँव,
दूर-दूर तक निर्जन पथ है,
न कोई नगरी, न कोई गाँव ।


चलते जाना ही नियति है,
क्रूर समय की बहुत गति है,
सब पड़ाव पर अपने-अपने,
अपने हिस्से ठौर न ठाँव......


सभी प्रयास असफल ही निकले,
निठुर दैव के भाव न पिघले,
कर्म -भाग्य की बिछी थी चौसर,
उल्टे बैठे सारे दाँव......


जेठ दुपहरी, नंगे पाँव....... संजीव मिश्रा

शनिवार, 30 जुलाई 2016

आगामी गुरु गोचर....कन्या राशि में ........

अगस्त ग्यार तारीख़ से, गुरु कन्या का होय,
हित ज्योतिष-जिज्ञासु के, बरनूं फल मैं सोय,

प्रथम जानो संक्षेप में, किस पर शुभ यह चाल,
पीछे विस्तृत रूप में, पढ़ेंगे सारा हाल,

वृषभ, सिंह, मीन और मकर, वृश्चिक पर शुभ जान,
सर्वविधी अनुकूल, इस, समय को लीजो मान,

वृष से पंचम में चलें जब, गुरूदेव महाराज,
संकट सारे दूर हों, बन जाएँ सब काज,

सुख-उन्नति धन-आगमन, कार्य सफलता दायी,
पद-वृद्धि संतान-सुख, रहे ख़ुशी घर छायी,

सिंह से दूजे थान में, गुरूदेव जो जायँ,
धन-ख्याति दोनों बढ़ें, शत्रु दग्ध हो जायँ,

वृश्चिक से हो ग्यारहवें, जब गुरु का संचार,
कार्यालय पद-वृद्धि हो, उन्नति सभी प्रकार,

सुत की प्राप्ति हो तथा, मान बढे पद साथ,
शत्रु स्वयं ही नष्ट हों, लगे सफलता हाथ,

मकर राशि से नवम में, गुरु देव जब आयँ,
उत्तम भोजन, पुत्र-सुख, स्त्री-संग दे जायँ,

घर की होवे प्राप्ति, उन्नति सभी प्रकार,
मन में उपजे शान्ति, उत्तम रहें विचार,

कन्या के गुरु, मीन से, रहें सात घर दूर,
रहेगा उत्तम काल ये, सुख सम्पति भरपूर,

स्वास्थ्य सही रहवे तथा तन-मन नहीं विकार,
उत्सव में हो व्यस्तता, ऊंचों से सत्कार,

यात्राएं होवें सुखद,सर्व सफलतादाई ,
सुत-दारा का सुख रहे, बढ़ी रहे प्रभुताई,

वेध का भी, अंशों सहित, पूरा करें विचार,
शुभता में वृद्धि-कमी, रहे उसी अनुसार,

कर शास्त्रों से संकलित, तुक में दिया पिरोय,
त्रुटियों पर होवे क्षमा, श्रेय ऋषी को होय,

तुच्छ-अकिंचन-अल्पबुध, का यह क्षुद्र प्रयास,
                         नाम लघु “संजीव” है, गंगा तीरे वास     ........... संजीव मिश्रा