तुम हो रूठे हुए या शरमाये ,
फ़िर दुबारा इधर नहीं आए ,
जब से तुम पर क़लम उठायी है ,
बैठे हो क्या क़सम कोई खाए ?
ऐसा क्या कह दिया भला मैंने ,
चंद अल्फाज़ बस तारीफ़ में ही बोले थे ,
ज़िन्दगी बेरंग थी,ये मेरी,मेरी तरह से ही,
तेरी आमद ने ही कुछ रंग इसमें घोले थे ,
तुम न आओगे तो फ़िर कौन यहाँ लिक्खेगा,
और भला कौन मुहब्बत के तराने गाये ।
भा गयी थी तेरी फितरत वो मुस्कुराने की ,
बाद मुद्दत के क़लम अपनी मुस्कुराई थी ,
तुमसे पहले तो ज़िन्दगी थी, एक स्यापा सी,
तुमसे पहले तो इक दुश्मन सी ये खुदायी थी ,
तुम तुमन आओगे तो फ़िर मायूसियां वही होंगी ,
और तेरा गम ये , न इस बार मुझे डस जाए ।
तुमको मंज़ूर नहीं ग़र मेरा यूँ लिखना तुम पर ,
ठीक है ये ही सही , अब ये भी कर ही जायेंगे ,
एक इकलौती ,अकेली खुशी ने लिखवाया ,
गम तो अनगिन हैं भला क्यूँ नहीं लिखवायेंगे ,
तुम न आओगे तो फ़िर वो ही लिखा जाएगा ,
आँख नम ही न रहे जिससे ,छलक ही जाए ।
तुम न आओगे तो दीवाना कहाँ जायेगा ,
तुम से होकर ही निकलती है हरेक राह मेरी ,
तुम न आओगे तो न चैन से रह पाओगे ,
तुमको ख़्वाबों में जगायेगी हरेक आह मेरी ,
तुम न आओगे तो फ़िर कैसे जिया जायेगा ,
तुम ही बतलाओ कोई कैसे ख़ुद को समझाए ।
तुम न आओगे तो बेमानी है सबका आना ,
तुम न आओगे तो बेकार हैं सारी बातें ,
तुम न आओगे तो कोई दिन न सुनहरा होगा ,
और मनहूस लगेंगी ये चांदनी रातें ,
तुम न आओगे तो 'संजीव ' मर ही जायेगा ,
बिन तुम्हारे यहाँ जीना है अब किसे भाये ।
तुम हो रूठे हुए या शरमाये ?