शनिवार, 3 जनवरी 2009

ऐसे नसीब कब हैं ........

हालात जो पहले थे ,
हालात वही अब हैं ,
कुछ चैन की साँसें लें ,
ऐसे नसीब कब हैं ।


इक हम ही हैं अकेले ,
गमज़दां , परेशां ,
बाक़ी तो इस जहाँ में ,
शादो-आबाद सब हैं ।


हम ढूंढ नहीं पाये ,
खुश होने का बहाना ,
रहने को उदास लेकिन ,
अनगिन यहाँ सबब हैं ।


होठों पे जिनके गाली ,
हाथों में जिनके खंज़र ,
ऐसे ही लोग कुछ अब ,
बन बैठे मेरे रब हैं ।


इस दुनिया में नहीं है ,
कहीं भी मेरा गुज़ारा ,
कुछ हम भी हैं अनोखे ,
कुछ लोग भी अजब हैं ।



शुक्रवार, 2 जनवरी 2009

हो गयी कम सज़ा और इक साल की....................

सबको ख़ुश देखा हमने नए साल पर ,
देखा सबको ही हँसते -हंसाते हुए ,
साल सारे हमारे तो बीते मगर ,
इक सज़ा जैसे रोते रुलाते हुए ।

साल है ये नया , हो मुबारक तुम्हें ,
न मुबारक कोई साल मुझको हुआ ,
न जिए कोई दुनिया में मेरी तरह ,
इस नए साल पर है मेरी ये दुआ ।

जश्न की रात वो तो सदा की तरह ,
अपनी तो बीती आंसू छिपाते हुए ।

हर नए साल ने है बहुत कुछ दिया ,
दीं नयी उलझनें , मुश्किलें दीं नयी ,
ग़म नए कुछ दिए , कुछ नयी जिल्लतें ,
इम्तहाँ और नाक़ामियां कुछ नयी ,

दिल में डर है छिपा , मैं हूँ सहमा हुआ ,
अब ये है साथ लाया क्या आते हुए ।

पर है थोडी खुशी भी , गया साल इक ,
हो गयी कम सज़ा और इक साल की ,
जैसे अब तक कटे , ये भी कट जायेगा ,
क्यों हो परवाह अब और इक साल की ,

आप जी भर जियें इस नए साल में ,
बीतूं ना मैं भी इसको बिताते हुए ।

मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

कैदी सा जिए जाते हैं ....... २

मैं हूँ इंसान इक नाचीज़ और अदना सा ,
मैं हूँ इक शख्सियत कमज़ोर और कमतर सी ,
एक तस्वीर हूँ बेरंग , एक गुल बे-बू ,
जो भी है कुफ्र खुदा का है , सहे जाते हैं ।


कोई भी फ़न नहीं मुझमें जिसे मैं बेच सकूं ,
तमाम दुनिया में मेरा तो कुछ भी मोल नहीं ,
नहीं है मेल ज़रा सा मेरा और दुनिया का ,
एक बेमेल सी संगत ये किए जाते हैं ।


हमसे उम्मीद लोग करते हैं शाद रहने की ,
पूछते हैं वज़ह हमसे उदास रहने की ,
वो हैं मासूम और नादाँ उन्हें ख़बर है क्या ,
जाम नाकामी के ऐसे ही पिए जाते हैं ।


रोज़ ज़िल्लत के यहाँ घूँट पीने पड़ते हैं ,
रोज़ सौ बार यहाँ किश्तों में मरना पड़ता है ,
रोज़ एक हिस्सा खुदी का फ़ना हो जाता है ,
रोज़ इस ज़ीस्त का हम सोग किए जाते हैं ।


रोयां - रोयां ये पूछता है तू क्यों ज़िंदा है ,
रगों में बहता हुआ लोहू तलक शर्मिंदा है ,
लगती है दिल की हरेक धड़कन भी अब तो गाली सी ,
बद - दुआ जैसी हरेक साँस लिए जाते हैं ।

सोमवार, 29 दिसंबर 2008

क़ैदी सा , जिए जाते हैं ........१

सब यहाँ कैसे खिलखिलाते हैं ,
कैसे जी भर तबस्सुम यहाँ लुटाते हैं ,
देख न ले कहीं तक़दीर हमको हँसते हुए ,
अपने होठों की मुस्कुराहट भी हम छुपाते हैं ।

कुछ को दुनिया है ये मैदाने-खेल की तरहा ,
और कुछ को है ये ऐशो-आराम की जगहा ,
आए हैं कुछ यहाँ बा - इज्ज़त एक न्यौते पर ,
हमारे जैसे तो क़ैदी से लाये जाते हैं ।

हमको हक़ है नहीं दिया गया कुछ जीने का ,
हमको है दी गयी सज़ा ये ज़िंदा रहने की ,
हमको न दी गयी इजाज़त है कुछ भी कहने की ,
क़ैद में हैं हम , क़ैदी सा , जिए जाते हैं ।

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

कुछ रेत जैसी खुशियाँ .........भाग २

तुमको भला ख़बर क्या ,
जो ज़िन्दगी जीता हूँ ,
हैं धड़कनें शर्मातीं ,
साँसें लगीं लजाने ।

मेरी ज़िन्दगी बेमानी ,
मेरा वज़ूद है बेमतलब ,
मुझे ज़मीन ने दुत्कारा ,
ठुकराया आस्मां ने ।

मुझमें न कुछ है बाक़ी ,
जो कुछ है क़लम में है ,
ज़िंदा रखे हूँ ख़ुद को ,
मैं लिखने के बहाने ।


मावस की रात जैसी
है ज़िन्दगी बिताई ,
हैं अंधेरे इतने देखे ,
उजाले लगे डराने ।

मेरी क़ब्र पर भी कोई ,
न चिराग़ तुम जलाना ,
कुछ बुझी हुई शमाएँ ,
रखना मेरे सिरहाने ।


मैं नहीं निराशावादी ,
मुझे ऐसा न समझना ,
बस वो ही दे रहा हूँ ,
जो दिया मुझे जहाँ ने ।

ऐसा ही नहीं था मैं ,
हँसता था मैं , गाता भी ,
क़िस्मत को रास आए न
" संजीव " के तराने ।