तुमको भला ख़बर क्या ,
जो ज़िन्दगी जीता हूँ ,
हैं धड़कनें शर्मातीं ,
साँसें लगीं लजाने ।
मेरी ज़िन्दगी बेमानी ,
मेरा वज़ूद है बेमतलब ,
मुझे ज़मीन ने दुत्कारा ,
ठुकराया आस्मां ने ।
मुझमें न कुछ है बाक़ी ,
जो कुछ है क़लम में है ,
ज़िंदा रखे हूँ ख़ुद को ,
मैं लिखने के बहाने ।
मावस की रात जैसी
है ज़िन्दगी बिताई ,
हैं अंधेरे इतने देखे ,
उजाले लगे डराने ।
मेरी क़ब्र पर भी कोई ,
न चिराग़ तुम जलाना ,
कुछ बुझी हुई शमाएँ ,
रखना मेरे सिरहाने ।
मैं नहीं निराशावादी ,
मुझे ऐसा न समझना ,
बस वो ही दे रहा हूँ ,
जो दिया मुझे जहाँ ने ।
ऐसा ही नहीं था मैं ,
हँसता था मैं , गाता भी ,
क़िस्मत को रास आए न
" संजीव " के तराने ।
बहुत बेहतरीन लिखा है।बधाई स्वीकारे।
जवाब देंहटाएंमुझमें न कुछ है बाक़ी ,
जो कुछ है क़लम में है ,
ज़िंदा रखे हूँ ख़ुद को ,
मैं लिखने के बहाने ।
"मैं नहीं निराशावादी ,
जवाब देंहटाएंमुझे ऐसा न समझना ,
बस वो ही दे रहा हूँ ,
जो दिया मुझे जहाँ ने ।"
ऐसी भावपूर्ण पंक्तियाँ देखकर मनन खुश हो जाता है |