सोमवार, 29 दिसंबर 2008

क़ैदी सा , जिए जाते हैं ........१

सब यहाँ कैसे खिलखिलाते हैं ,
कैसे जी भर तबस्सुम यहाँ लुटाते हैं ,
देख न ले कहीं तक़दीर हमको हँसते हुए ,
अपने होठों की मुस्कुराहट भी हम छुपाते हैं ।

कुछ को दुनिया है ये मैदाने-खेल की तरहा ,
और कुछ को है ये ऐशो-आराम की जगहा ,
आए हैं कुछ यहाँ बा - इज्ज़त एक न्यौते पर ,
हमारे जैसे तो क़ैदी से लाये जाते हैं ।

हमको हक़ है नहीं दिया गया कुछ जीने का ,
हमको है दी गयी सज़ा ये ज़िंदा रहने की ,
हमको न दी गयी इजाज़त है कुछ भी कहने की ,
क़ैद में हैं हम , क़ैदी सा , जिए जाते हैं ।

मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

कुछ रेत जैसी खुशियाँ .........भाग २

तुमको भला ख़बर क्या ,
जो ज़िन्दगी जीता हूँ ,
हैं धड़कनें शर्मातीं ,
साँसें लगीं लजाने ।

मेरी ज़िन्दगी बेमानी ,
मेरा वज़ूद है बेमतलब ,
मुझे ज़मीन ने दुत्कारा ,
ठुकराया आस्मां ने ।

मुझमें न कुछ है बाक़ी ,
जो कुछ है क़लम में है ,
ज़िंदा रखे हूँ ख़ुद को ,
मैं लिखने के बहाने ।


मावस की रात जैसी
है ज़िन्दगी बिताई ,
हैं अंधेरे इतने देखे ,
उजाले लगे डराने ।

मेरी क़ब्र पर भी कोई ,
न चिराग़ तुम जलाना ,
कुछ बुझी हुई शमाएँ ,
रखना मेरे सिरहाने ।


मैं नहीं निराशावादी ,
मुझे ऐसा न समझना ,
बस वो ही दे रहा हूँ ,
जो दिया मुझे जहाँ ने ।

ऐसा ही नहीं था मैं ,
हँसता था मैं , गाता भी ,
क़िस्मत को रास आए न
" संजीव " के तराने ।

शनिवार, 13 दिसंबर 2008

कुछ रेत जैसी खुशियाँ ..........

दोज़ख़ हो देखनी ग़र ,
तो मुझको देख ले तू ,
इक ज़िन्दा मिसाल हूँ मैं ,
तेरे सामने ज़माने ।

कुछ रेत जैसी खुशियाँ
हैं बस तेरी मुट्ठी में ,
मैंने दिल में छुपा रखे हैं ,
ग़म के कई ख़जाने ।

क्यूँ वक़्त ज़ाया करता
है दुनिया के तरानों में ,
फ़ुर्सत से आ किसी दिन ,
और सुन मेरे फ़साने ।

मैं याद करता आया ,
ता - उम्र जिस ख़ुदा को ,
वो ख़ुदा कहाँ छुपा है
ये तो ख़ुदा ही जाने ।


सुनता है वो सभी की ,
कुछ देर भले हो जाए ,
दुनिया ये मानती हो ,
“संजीव ” तो न माने ।

शुक्रवार, 5 दिसंबर 2008

ज़िन्दगी है प्याला ..............भाग ३

प्याले बनाए बिन - गिन ,
मय नाप कर बनायी ,
कहीं इतनी , कि छलक जाए ,
कहीं गंध भी न आयी ,

भरे ज़्यादतरमें आंसू ,
कुछ में ही है शराब ।



प्याला न तोड़ सकते ,
उम्मीद अभी बाक़ी है ,
इक दिन तो पिलाएगा वो ,
आख़िर को वो साकी है ,

प्याला दिया तो उसका -
है फ़र्ज़ , दे शराब ।


पर हो भरा या खाली ,
प्याला तो टूटना है ,
साकी को एक दिन तो ,
सब से ही रूठना है ,

उस दिन न कुछ बचेगा ,
ना प्याला ना शराब ।


तरसा हूँ मैं इतना , के
अब प्यास खो गयी है ,
यूँ ही तड़पने की अब
आदत सी हो गयी है ,

सब लगता है मुझको झूठा ,
क्या प्याला क्या शराब ।


ज़िन्दगी है प्याला ,
तक़दीर है शराब ,
जिसे जितनी मिल गयी , वो
उतना ही क़ामयाब ।


रविवार, 30 नवंबर 2008

जिंदगी है प्याला ......भाग २


प्याला न ख़राब कोई
न कोई भला प्याला ,
इक खेल खेलता है ,
सबसे पिलाने वाला ,

इक में लबालब , इक में
इक बूँद न शराब ।


जिसे जितनी मिल गयी वो ..........

कोई है नशे में सोता ,
कोई जागता है भूखा ,
कहीं मखमली हैं बिस्तर ,
कहीं कौर भी न रूखा ,

क्यों प्याला दे दिया , जब
देनी न थी शराब ।

जिसे जितनी मिल गयी वो ..........

हम भी तरस रहे हैं ,
पाने को चंद बूँदें ,
हम मांगकर थके , वो
बैठा है कान मूंदे ,

शायद हमारा प्याला
ना - काबिले शराब ।

ज़िन्दगी है प्याला
तकदीर है शराब
जिसे जितनी मिल गयी
वो उतना ही कामयाब