रविवार, 30 नवंबर 2008

जिंदगी है प्याला ......भाग २


प्याला न ख़राब कोई
न कोई भला प्याला ,
इक खेल खेलता है ,
सबसे पिलाने वाला ,

इक में लबालब , इक में
इक बूँद न शराब ।


जिसे जितनी मिल गयी वो ..........

कोई है नशे में सोता ,
कोई जागता है भूखा ,
कहीं मखमली हैं बिस्तर ,
कहीं कौर भी न रूखा ,

क्यों प्याला दे दिया , जब
देनी न थी शराब ।

जिसे जितनी मिल गयी वो ..........

हम भी तरस रहे हैं ,
पाने को चंद बूँदें ,
हम मांगकर थके , वो
बैठा है कान मूंदे ,

शायद हमारा प्याला
ना - काबिले शराब ।

ज़िन्दगी है प्याला
तकदीर है शराब
जिसे जितनी मिल गयी
वो उतना ही कामयाब

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