प्याले बनाए बिन - गिन ,
मय नाप कर बनायी ,
कहीं इतनी , कि छलक जाए ,
कहीं गंध भी न आयी ,
भरे ज़्यादतरमें आंसू ,
कुछ में ही है शराब ।
प्याला न तोड़ सकते ,
उम्मीद अभी बाक़ी है ,
इक दिन तो पिलाएगा वो ,
आख़िर को वो साकी है ,
प्याला दिया तो उसका -
है फ़र्ज़ , दे शराब ।
पर हो भरा या खाली ,
प्याला तो टूटना है ,
साकी को एक दिन तो ,
सब से ही रूठना है ,
उस दिन न कुछ बचेगा ,
ना प्याला ना शराब ।
तरसा हूँ मैं इतना , के
अब प्यास खो गयी है ,
यूँ ही तड़पने की अब
आदत सी हो गयी है ,
सब लगता है मुझको झूठा ,
क्या प्याला क्या शराब ।
ज़िन्दगी है प्याला ,
तक़दीर है शराब ,
जिसे जितनी मिल गयी , वो
उतना ही क़ामयाब ।
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