जब घटा आसमां पर छाती है , मेरी यादों से ग़म बरसता है,
जब हवा झूम-झूम
चलती है , मेरे ज़ख्मों से खून रिसता है।
दूर जब कोई गीत सुनता हूँ , एक उदासी सी चली आती है ,
चांदनी बादलों
से छन-छन के ,
मुझमें इक आह
सी जगाती है,
तारे सब मुझपे
मुस्कुराते हैं ,
चाँद छुप-छुप
के मुझपे हंसता है।
मुझमें क्या
दर्द है जो पलता है , आज तक मैं समझ नहीं पाया,
जिसको कर याद
कुछ सुकूं पाऊं ,मुझको वो ख्व़ाब तक नहीं आया,
मेरा दामन है
पकड़े मायूसी ,
ग़म मेरे साथ
-साथ चलता है .
लोग ख़ुशियाँ कहाँ से लाते हैं , ख़ुद से अक्सर सवाल करता हूँ,
सूनी आंखों से
देखता रहकर ,
देर तक सोच में गुम रहता हूँ ,
जब , बांह बांहों में डाल राहों
में , कोई जोड़ा हसीं निकलता है .
हमको उम्मीद आसमां से थी, सितारे “संजीव” के भी बदलेंगे
घिस के माथा ये उसकी चौखट पे,
हम मुक़द्दर ये हक़ में कर लेंगे,
पर ,जिसको कहते हैं
मन्दिरो-मस्जिद , उसका पत्थर कहाँ पिघलता है.