जीवन की पीड़ाओं को शब्दों में उंडेलने का प्रयास करता, प्रेम-मिलन,विरह,दुख, भाग्य आदि विभिन्न भावनाओं को शब्द देता एक कविता-गीत-ग़ज़ल शायरी का ब्लॉग। ज़िन्दगी की सज़ा काटने में आयीं दुश्वारियों को शायरी की ज़ुबान देने की एक कोशिश।
मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008
आह लगती है
खुशी की चाहत भी मुझको , इक गुनाह लगती है ,
जिसकी मंजिल हो सिर्फ़ नाकामी ,
जिंदगी मेरी मुझे ऐसी राह लगतीहै।
जब हवा झूम-झूम चलती है......
जब घटा आसमां पर छाती है , मेरी यादों से ग़म बरसता है,
जब हवा झूम-झूम चलती है , मेरे ज़ख्मों से खून रिसता है।
दूर जब कोई गीत सुनता हूँ , एक उदासी सी चली आती है ,
चांदनी बादलों से छन-छन के , मुझमें इक आह सी जगाती है,
तारे सब मुझपे मुस्कुराते हैं , चाँद छुप-छुप के मुझपे हंसता है।
जब हवा झूम-झूम चलती है , मेरे ज़ख्मों से खून रिसता है।
मुझमें क्या दर्द है जो पलता है , आज तक मैं समझ नहीं पाया,
जिसको कर याद कुछ सुकूं पाऊं ,मुझको वो ख्वाब तक नहीं आया,
मेरा दामन है पकड़े मायूसी , ग़म मेरे साथ -साथ चलता है .
जब हवा झूम -झूम चलती है , मेरे ज़ख्मों से खून रिसता है ।
लोग खुशियाँ कहाँ से लाते हैं , ख़ुद से अक्सर सवाल करता हूँ,
सूनी आंखों से देखता रहकर , देर तक सोच में गुम रहता हूँ ,
जब , बांह बांहों में डाल राहों में , कोई जोड़ा हसीं निकलता है .
जब हवा झूम - झूम चलती है , मेरे ज़ख्मों से खून रिसता है
शनिवार, 29 दिसंबर 2007
व्यथा
दास्ताँ ग़मों की, दर्द की कथा।
हँसती है मुझ पर
यूँ जिंदगी मेरी,
जैसे कुरूप पर , कोई परी,
कैसे जियें हम,कोई दे बता।
साथ हर कदम पे,
है दुःख दर्द ग़म,
न मंज़िल कोई जिसकी ,
वो राह हम,
हमेशा ही किस्मत ने दी है दगा।
फूंकूं जहाँ को, या खुद को जला दूं ,
ये सारी खुदाई अतल में मिला दूं
क्यूं दुश्मन हमारा बना है खुदा।