शनिवार, 29 दिसंबर 2007

व्यथा

किस से कहूं मन की व्यथा,

दास्ताँ ग़मों की, दर्द की कथा।



हँसती है मुझ पर

यूँ जिंदगी मेरी,

जैसे कुरूप पर , कोई परी,

कैसे जियें हम,कोई दे बता।


साथ हर कदम पे,


है दुःख दर्द ग़म,

न मंज़िल कोई जिसकी ,

वो राह हम,

हमेशा ही किस्मत ने दी है दगा।


फूंकूं जहाँ को, या खुद को जला दूं ,


ये सारी खुदाई अतल में मिला दूं

क्यूं दुश्मन हमारा बना है खुदा।

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