शनिवार, 19 अक्टूबर 2013

साया था....



आज फिर दिन है वही, के दुनिया में जब मैं आया था.
यूं  ही   घुट   घुट के जिये  जाने की सज़ा पाया था,

रहूँगा   ज़िन्दा   मगर,    ज़िन्दगी   को   तरसुंगा,
साथ   अपने   मैं,   ख़ुदा   की   ये  रज़ा लाया था,

ऐसे     कुछ    बीती    है   अब तलक उमर ये मेरी,
ज्यों   कोई    मुझको   मिटाने   की क़सम खाया था,

जो   भी   चाहा,   वो  ही खोया था , खेल था कैसा ,
जो   किया   मैंने,  कहीं-कुछ   भी, वो सब ज़ाया था,

मैंने   चाहा   कि  जियूं   मैं   भी   सभी  की तरहा,
करूँ   तो    क्या  के    इक   वक़्त  बुरा  छाया था,

तेरा   “संजीव”   कभी,  पा   सका   न कुछ भी कहीं ,
मेरी  तद्वीरों    पे,   नाक़ामियों   का    साया   था .

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

ख़ुदाई से गिले होंगे.......

दिवाली आयेगी  फ़िर  दिल जलाने कुछ ग़रीबों का,
कहीं  चूल्हे  बुझे  होंगे,   कहीं  दीपक  जले होंगे,

कहीं  कुछ  भूखे  बच्चे सोयेंगे बस डांट खा माँ की,
बहुत  अरमां   पटाखे  बन  के  धूएँ में मिले होंगे,

तुम्हारा क्या है तुम पर तो  ख़ुदा है मेहरबां दिल से,
तुम्हें   कपड़े    नए,  जूते   फटे हमने सिले होंगे,

दिवाली  की  अमावस में  तू  होना चाँद सी रौशन,
खिज़ां  के  फूल  ठहरे  हम, बियाबां में खिले होंगे,

ज़रा  सा  सोचना  हर इक धमाका कर के तुम थोड़ा,
मकां  किस  तरहा  से  कितने  ग़रीबों के हिले होंगे,

न हो जब तक, हर इक घर में चरागाँ , पेट भर रोटी,
ख़ुदा  “संजीव”   को  तेरी  ख़ुदाई   से  गिले  होंगे.......

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

कल फ़िर ईद है कोई....



सनम का चाँद सा चेहरा, न हो जब तक निगाहों में,
कहाँ  ईदुलज़ुहा  तब  तक  ,  कहाँ बकरीद है कोई,

सुबह   उठ  कर   नहाकर सामने आये तो है पूनम,
वही  मावस जो  जुल्फें  डालकर रुख़ पे हो वो सोई,

वो जब  बांहों  में   हों  मेरी,  शबे-बारात है वो ही,
सभी त्यौहार  उस दिन, जब, सजी उम्मीद  हो कोई,

ख़ुदा  के  नाम  से  पहले  अता उसको मेरा सज़दा,
कोई  है  क़ुफ्र   कहता  और  कहे  दीवानगी  कोई,

वो  हो जो  दूर   तो आलम मुहर्रम सा ये लगता है,
वो   दीखे  तो  लगता है पितर का पक्ष हो कोई,

तेरे  “संजीव”  की  हालत  बताऊँ क्या भला तुझको,
चले  आओ  बताते  हैं  कि  कल  फ़िर ईद है कोई........संजीव मिश्रा

शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

फ़ितरत है बड़ी सादी सी....

मैं जो  तनहा हूँ   इधर,   वो भी अकेले होंगे,
ये      अलग  बात   हसीं यादों  के मेले होंगे,

आज   की  रात मेरी बांहों में गुज़र जाने दो,
कल से फिर सारे वही दुनियावी झमेले होंगे,

चाहने   वाले   तुम्हें   यूं   तो   बहुत   सारे है,
तुमपे मिट जाए जो, हम शख्स वो पहले होंगे,

माना "संजीव" की फ़ितरत है बड़ी सादी सी,
ख्व़ाब   पर   उसके   बड़े   रंगीं,  रुपहले होंगे.....

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

क़सम खाए हैं.....

जिये जाते हैं  बस, उनकी ख़ुशी की ख़ातिर,
के जो दुनिया में, बस मेरे ही लिए आये  हैं,

बहुत क़रीब हैं दिल के वो, मगर उनसे भी,
वो क्या जानें के हम, क्या-क्या रहे छिपाए हैं,

क्या-क्या चाहा था कि करूँगा मैं, वास्ते उनके,
करें तो  क्या के, इक मुक़द्दर ख़राब लाये है,

मेरी तदवीरों  के वो सारे किले तोड़ गयी,
लड़ के तकदीर से जो हमने कभी बनाए हैं,

कोई चाहे न सराहे “संजीव” हम फिर भी,
यूं ही ताउम्र लिखे जाने की क़सम खाए हैं.....